छिंदवाड़ा

महिला डॉक्टर ने नवजात को मारी लात, सीएम के जिले का मामला

जिला अस्पताल का मामला: परिजन ने सिविल सर्जन से की शिकायत, महिला डॉक्टर ने गोद में बैठे शिशु को मारी लात

छिंदवाड़ाJan 04, 2019 / 11:45 am

Dinesh Sahu

Female doctor kills newborn, case of CM’s district

छिंदवाड़ा. सिविल सर्जन सह अधीक्षक कार्यालय के समीप गुरुवार सुबह करीब 12.15 बजे एक वृद्धा की गोद में लेटे नवजात को जिला अस्पताल की महिला डॉक्टर में लात मारी दी। इससे परिसर में तनाव उत्पन्न हो गया। मुख्यमंत्री के क्षेत्र के अस्पताल में ऐसी घटना पर लोग आक्रोशित हो गए। इधर पीडि़ता ने मामले की शिकायत सिविल सर्जन डॉ. सुशील राठी से की जिस पर उचित कार्रवाई का आश्वासन दिया गया और शिशु का स्वास्थ्य परीक्षण कराया गया।

मोहखेड़ विकासखंड अंतर्गत इकलबिहरी निवासी गणेशी साहू ने बताया कि वह नाती को गोद में लेकर बैठी थी। इसी बीच दोपहिया गाड़ी निकालने आई डॉक्टर ने हटने का बोले बिना ही वहां मौजूद वृद्धा की गोद में बैठे शिशु को लात मारी। परिजन ने बताया कि 21 दिसम्बर 2018 को उनकी बहू भागवती पति कमलेश साहू प्रसव पीड़ा के चलते जिला अस्पताल में भर्ती हुई थी। स्थिति अनुकूल नहीं होने पर 22 दिसम्बर को सीजर ऑपरेशन करना पड़ा था। डिस्चार्ज होने से वह घर लौटने की तैयारी कर रहे थे। इसी बीच उक्त हादसा हो गया।

पहले भी हुई कई बार शिकायत


जिला अस्पताल की मॉडल मेटर्निटी विंग में पदस्थ महिला चिकित्सक अक्सर विवादों रहती है। गर्भवती या शिशुओं को लात मारने की यह पहली घटना नहीं है। कई बार सम्बंधित डॉक्टर के खिलाफ शिकायत भी की गई, लेकिन अधिकारी कार्रवाई करने से हिचकिचाते रहे हैं। चिकित्सा अधिकारी भी उक्त डॉक्टर से बैर नहीं चाहते इसलिए कार्रवाई करने से डरते हैं। हाल ही में पोस्टमार्टम नहीं किए जाने पर पुलिसकर्मी से भी विवाद हो चुका है।

मामले में सम्बंधित डॉक्टर के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी तथा घटना के संदर्भ में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी समेत उच्चाधिकारियों को पत्र लिखा जाएगा।

डॉ. सुशील राठी, सिविल सर्जन


मेडिकल के डॉक्टर नहीं करते मदद

इधर गायनिक विभाग में मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर अथवा अधिकारियों द्वारा मरीज के उपचार में कोई मदद नहीं की जाती है। इससे जिला अस्पताल के डॉक्टर तथा स्टाफ में दबाव बढ़ता है। कई बार कार्यों को लेकर तनाव भी उत्पन्न होता है। डीन से शिकायत करने पर भी को सुधार नहींं हुआ है। बताया जाता है कि प्रोफेसर होने से मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर उपचार नहीं करना चाहते हैं।

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