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जंगलों की तबाही की यह है सबसे बड़ी वजह

locationछिंदवाड़ाPublished: Mar 05, 2019 10:49:47 am

Submitted by:

prabha shankar

महुआ सीजन शुरू होते ही जंगलों में बढ़ जाएगा आग का खतरा

Mahua in the jungle

Mahua in the jungle

छिंदवाड़ा. मार्च के दूसरे पखवाड़े में जंगलों में आग लगने का खतरा बढ़ जाएगा, जब महुआ बीनने के लिए वनवासी निकल पड़ेंगे। अलसुबह चार से छह बजे के बीच ये लोग पेड़ के नीचे महुआ एकत्र करते हैं। इस दौरान पेड़ के नीचे अंगार जलाने या फिर बीड़ी जलाकर फेंकने से जंगलों में आग लग जाती है। इसे देखते हुए वन विभाग के अधिकारियों ने अभी से ही कर्मचारियों को सतर्क कर दिया है। आम तौर पर महुआ का सीजन 15 मार्च से 15 अप्रैल तक माना जाता है। गर्मी पाकर यह फल पक जाता है और सुबह चार बजते ही गिरना शुरू हो जाता है। वनवासियों की कमाई का ये महुआ बड़ा स्रोत है।
वे इसे एकत्र करने के बाद सुखाकर बाजार में बेच देते हैं। इस प्रक्रिया में एक सिरदर्द सिर्फ जंगलों में आग लगने का खतरा है। छिंदवाड़ा वन वृत्त के तीन वनमण्डल पूर्व, पश्चिम और दक्षिण के जंगली क्षेत्र को देखा जाए तो औसतन 25 आग लगने की घटनाएं महुआ सीजन में होती है। इसका मुख्य कारण महुआ फल बीनने के लिए सुबह पेड़ के नीचे आग जलाना है। फिर जैसे ही वनवासी उसे बीन लेते हैं, उस आग को वहीं छोडकऱ चल देते हैं। यही आग हवा के सहारे जंगल में पहुंच जाती है। सूखी घास और पत्ते से फैलते-फैलते बड़े-बड़े पेड़ों को राख कर देती है। हर साल अभियान चलाए जाने के बाद भी वनवासी जागरूक नहीं हो पाए हैं। इसे वन विभाग के निचले से लेकर उच्च स्तर के अधिकारी भी स्वीकारते रहे हैं।

पेड़ों के नीचे सफाई की दी सीख
आगामी 15 मार्च के बाद शुरू हो रहे महुआ सीजन को लेकर दक्षिण वनमण्डल के मैदानी कर्मचारियों को सजग कर दिया गया है। लघु वनोपज से जुड़े सौंसर क्षेत्र के एसडीओ आरएस धुर्वे ने कर्मचारियों को इसकी ट्रेनिंग भी दी है। बताया गया कि महुआ पेड़ों के नीचे सफाई की जाना चाहिए। इसके साथ ही लोगों को अभी से ही गांव में जागरूक किया जाए। इससे जंगलों को आग लगने से बचाया जा सकेगा। धुर्वे ने बताया कि महुआ बीनते समय लापरवाही से पेड़ के नीचे आग जलाने और बीड़ी पीकर कहीं भी फेंक देने से ऐसी घटनाएं होती हं। इसे हर हाल में रोकने की तैयारी दक्षिण वनमण्डल स्तर पर की गई है।

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