आदिवासी करते हैं नदी की पूजा
घटामाली नदी जहां से झरने के रूप में नीचे गिरती है वहां पर आदिवासी नदी की बहती जलधारा में दूध और पुष्प अर्पित करते है। घटामाली नदी एक कुंड में गिरती है इस कुंड को देवरानीकुंड के नाम से जाना जाता है। घटामाली नदी इस क्षेत्र की जीवन रेखा है। इस पूरे इलाके में सिंचाई के लिए एकमात्र यहीं नदी है। देवरानी में स्थित वनदेवी मंदिर के प्रति आदिवासियों की अगाध श्रद्धा है। हाल के वर्षों में यहां मंदिर बना दिया गया है। मान्यता के अनुसार मंदिर के पास स्थित एक पेड़ पर गिरमा बांधने से गुम हो गए पशु वापस मिल जाते है।
आजादी की उठी थी आवाज
देवरानी दाई का इतिहास आजादी के दीवानों से जुड़ा हुआ है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान छिंदवाड़ा ट्रेजरी पर हमले की रणनीति इन्हीं जंगलों में बनाई गई थी। प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बादलभोई देवरानी तट के समीप के गांव डुंगरिया तीतरा के निवासी थी। देवरानी दाई स्थित झरने के पीछे बादलभोई की गुफा है। माना जाता है कि आजादी की लड़ाई के दीवाने यहीं बैठकर अपनी रणनीति बनाते थे।
मेले में सजी हैं दुकानें
मेले में अनेक पारम्परिक सामग्रियों की दुकानें लगी हुई है। शहरी अंचलों से लुप्त वस्तुएं मेले में दिखाई दे रही है। मेले में पहाड़ी जड़ी बूटी, मिट्टी के खेल खिलौने, श्रंृगार प्रसाधन, मिठाइयां, दैनिक उपयोग की वस्तुओं से दुकानें सजी हुई है। बड़ी संख्या में आदिवासी महिलाएं कतार लगाकर गुदना गुदवा रही है। मेले में प्रशासनिक व्यवस्था नाम मात्र की नहीं है।