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कल-कल बहता झरना करता है आकर्षित

locationछिंदवाड़ाPublished: Dec 05, 2018 05:16:42 pm

पिपरिया मुख्य मार्ग पर अनखावाड़ी से पूर्व दिशा में 10 किमी दूर घटामाली नदी पर यह धार्मिक स्थल मनोहारी एवं प्राकृतिक सुन्दरता से परिपूर्ण है।

Flowing waterfall attracts

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परासिया. आदिवासी बाहुल्य तीतरा डुंगरिया क्षेत्र में घटामाली नदी के किनारे सुरम्य पहाड़ी वादियों के बीच स्थित धार्मिक स्थल देवरानी दाई में सात दिवसीय मेला कार्तिक पूर्णिमा से शुरू होता है लेकिन इस बार विधानसभा चुनाव के कारण मेला तिथि को आगे बढा दिया गया। पिपरिया मुख्य मार्ग पर अनखावाड़ी से पूर्व दिशा में 10 किमी दूर घटामाली नदी पर यह धार्मिक स्थल मनोहारी एवं प्राकृतिक सुन्दरता से परिपूर्ण है।
देवरानी दाई के मेले में विशाल जस प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है। जस प्रतियोगिता में मंडलों को 10 पुरस्कारों के अलावा सभी मंडलों को सांत्वना पुरस्कार दिया जाएगा। देवरानी जेठानी की दंत कथाओं पर आधारित इस धार्मिक स्थल पर बड़ी संख्या में ग्रामीण एकत्रित होते है। झरने के रूप में नदी का बहता कल-कल करता जल सौंदर्य एवं हरियाली से लदी पहाडिय़ां बरबस लोगों को आकर्षित करती है। यह स्थान धीरे-धीरे पर्यटक स्थल के रूप में विकसित हो रहा है। इस मेले में प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में श्रद्धालु एवं भक्तगण पहुंचते है। इस स्थान की आस्था एवं धार्मिक महत्व बढऩे से जिले के बाहर के श्रद्धालु शामिल होते है। भक्तगण घटामाली नदी में स्नान कर मां देवरानी दाई की पूजा अर्चना कर अपनी मन्नत मांगते है।
वनदेवी की पूजा: सतपुड़ा के घने जंगलों का सौंदर्य विख्यात है। परासिया से 25 किमी दूर देवरानी के जंगलों में प्रकृति ने सौंदर्य का अद्भुत संसार रचा है। वृक्षों के झुरमुटों के बीच कलकल करता झरना, चट्टानों का अनुपम सौंदर्य, वनदेवी के मंदिर की घंटियां एक अलग ही अहसास कराती है। घने जंगलों के बीच प्रकृति के कैनवास पर कुदरत की चित्रकारी को देखने के लिए पगारा से 8 किमी दूर सेमरताल होते हुए तुरसी ग्राम के इस भाग में पहुंचा जा सकता है। मेले में आसपास क्षेत्रों के आदिवासी भक्त बड़ी संख्या में देवरानी दाई स्थित वनदेवी के मंदिर में पूजा अर्चना करने आ रहे है।

आदिवासी करते हैं नदी की पूजा
घटामाली नदी जहां से झरने के रूप में नीचे गिरती है वहां पर आदिवासी नदी की बहती जलधारा में दूध और पुष्प अर्पित करते है। घटामाली नदी एक कुंड में गिरती है इस कुंड को देवरानीकुंड के नाम से जाना जाता है। घटामाली नदी इस क्षेत्र की जीवन रेखा है। इस पूरे इलाके में सिंचाई के लिए एकमात्र यहीं नदी है। देवरानी में स्थित वनदेवी मंदिर के प्रति आदिवासियों की अगाध श्रद्धा है। हाल के वर्षों में यहां मंदिर बना दिया गया है। मान्यता के अनुसार मंदिर के पास स्थित एक पेड़ पर गिरमा बांधने से गुम हो गए पशु वापस मिल जाते है।

आजादी की उठी थी आवाज
देवरानी दाई का इतिहास आजादी के दीवानों से जुड़ा हुआ है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान छिंदवाड़ा ट्रेजरी पर हमले की रणनीति इन्हीं जंगलों में बनाई गई थी। प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बादलभोई देवरानी तट के समीप के गांव डुंगरिया तीतरा के निवासी थी। देवरानी दाई स्थित झरने के पीछे बादलभोई की गुफा है। माना जाता है कि आजादी की लड़ाई के दीवाने यहीं बैठकर अपनी रणनीति बनाते थे।

मेले में सजी हैं दुकानें
मेले में अनेक पारम्परिक सामग्रियों की दुकानें लगी हुई है। शहरी अंचलों से लुप्त वस्तुएं मेले में दिखाई दे रही है। मेले में पहाड़ी जड़ी बूटी, मिट्टी के खेल खिलौने, श्रंृगार प्रसाधन, मिठाइयां, दैनिक उपयोग की वस्तुओं से दुकानें सजी हुई है। बड़ी संख्या में आदिवासी महिलाएं कतार लगाकर गुदना गुदवा रही है। मेले में प्रशासनिक व्यवस्था नाम मात्र की नहीं है।

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