दुर्लभ है चौरागढ़ का मार्ग
सतपुड़ा की पहाडिय़ों के शीर्ष स्थल पचमढ़ी के चौरागढ़ स्थित भगवान शंकर के धाम पहुंचने का मार्ग दुर्गम है। होशंगाबाद जिले के पचमढ़ी की सुरम्य पहाडिय़ों में स्थित चौरागढ़ पहुंचने के लिए भक्तों को सर्वप्रथम सांगाखेड़ा के भूराभगत पहुंचना होता है। भूराभगत पहुंचने के लिए शिववभक्त अपनी यात्रा की शुरुआत पहली पायरी से प्रारंभ करते है। 24 किमी लम्बे रास्ते में सात-सात पहाडिय़ों तथा कई नदियों को पार कर पहुंचते है। इसके पश्चात् चौरागढ़ के लिए 9 किमी ऊंचाई का खड़े पहाड़ की चढ़ाई प्रारंभ कर देते है। मेले के दौरान जुन्नारदेव विकासखंड में जगह-जगह भंडारों का आयोजन किया जाता है जिसका प्रसाद भक्त ग्रहण करते है। छिन्दवाड़ा सहित विदर्भ के शिवभक्तों के लिए विशाल भंडारे का आयोजन लगभग 7 से 10 दिनों तक निरन्तर किया जाता है।
भस्मासुर से डरकर भागे थे शिव
प्राचीन किवदंती के अनुसार ऐसा माना जाता है कि जब राक्षस भस्मासुर को इस वरदान मिलने के बाद की वह जिसके सर पर हाथ रखेगा वह भस्म हो जाएगा तब वरदान की सत्यता को परखने के लिए भगवान शंकर को ही चुन लिया था और वह भगवान शंकर के पीछे लग गया था। तब भगवान शिव ने पहली पायरी की गुफा में ही छिपकर जान बचाई थी।
थकान भरे रास्ते में कपूर बनता है सहारा
इस दुर्लभ व थकान भरी यात्रा के दौरान शिवभक्तों के लिए कपूर ही सहारा बनता है। शिवभक्त भारी भरकम त्रिशूल कंधे पर लेकर दुर्गम पहाडिय़ों को लांगते हुए हर-हर महादेव के उदघोष से बढ़ते चलते है। इस थकान देने वाली लंबी पैदल यात्रा में शिवभक्तों के लिए कपूर की अहम भूमिका होती है। थकावट का असर देखते ही शिवभक्त कपूर को जलाकर उससे उर्जा प्राप्त करते है। पैदल यात्रा के दौरान जिस स्थान पर विश्राम करते है उस स्थान पर कपूर की धूप देते है। उसके बाद स्वयं धूप लेकर थकान मिटाकर आगे का रास्ता तय करते है।
प्रशासन हुआ मुस्तैद
प्रशासन ने मेला प्रारंभ होने के पूर्व ही पुख्ता इंतजाम शुरू कर दिए है। जिसमें मेला यात्रियों के लिए सबसे प्रमुख क्षेत्रों सहित अधिक जंगल एवं अंधेरे वाले क्षेत्रों में रोशनी की पर्याप्त व्यवस्था की गई है। इसके अतरिक्त जगह-जगह शिव भक्तों के लिए पेयजल के साथ-साथ चिकित्सा सुविधाएं एवं सुरक्षा की दृष्टि से पुलिस बल भी उपलब्ध कराया जा रहा है।
सतपुड़ा की पहाडिय़ों के शीर्ष स्थल पचमढ़ी के चौरागढ़ स्थित भगवान शंकर के धाम पहुंचने का मार्ग दुर्गम है। होशंगाबाद जिले के पचमढ़ी की सुरम्य पहाडिय़ों में स्थित चौरागढ़ पहुंचने के लिए भक्तों को सर्वप्रथम सांगाखेड़ा के भूराभगत पहुंचना होता है। भूराभगत पहुंचने के लिए शिववभक्त अपनी यात्रा की शुरुआत पहली पायरी से प्रारंभ करते है। 24 किमी लम्बे रास्ते में सात-सात पहाडिय़ों तथा कई नदियों को पार कर पहुंचते है। इसके पश्चात् चौरागढ़ के लिए 9 किमी ऊंचाई का खड़े पहाड़ की चढ़ाई प्रारंभ कर देते है। मेले के दौरान जुन्नारदेव विकासखंड में जगह-जगह भंडारों का आयोजन किया जाता है जिसका प्रसाद भक्त ग्रहण करते है। छिन्दवाड़ा सहित विदर्भ के शिवभक्तों के लिए विशाल भंडारे का आयोजन लगभग 7 से 10 दिनों तक निरन्तर किया जाता है।
भस्मासुर से डरकर भागे थे शिव
प्राचीन किवदंती के अनुसार ऐसा माना जाता है कि जब राक्षस भस्मासुर को इस वरदान मिलने के बाद की वह जिसके सर पर हाथ रखेगा वह भस्म हो जाएगा तब वरदान की सत्यता को परखने के लिए भगवान शंकर को ही चुन लिया था और वह भगवान शंकर के पीछे लग गया था। तब भगवान शिव ने पहली पायरी की गुफा में ही छिपकर जान बचाई थी।
थकान भरे रास्ते में कपूर बनता है सहारा
इस दुर्लभ व थकान भरी यात्रा के दौरान शिवभक्तों के लिए कपूर ही सहारा बनता है। शिवभक्त भारी भरकम त्रिशूल कंधे पर लेकर दुर्गम पहाडिय़ों को लांगते हुए हर-हर महादेव के उदघोष से बढ़ते चलते है। इस थकान देने वाली लंबी पैदल यात्रा में शिवभक्तों के लिए कपूर की अहम भूमिका होती है। थकावट का असर देखते ही शिवभक्त कपूर को जलाकर उससे उर्जा प्राप्त करते है। पैदल यात्रा के दौरान जिस स्थान पर विश्राम करते है उस स्थान पर कपूर की धूप देते है। उसके बाद स्वयं धूप लेकर थकान मिटाकर आगे का रास्ता तय करते है।
प्रशासन हुआ मुस्तैद
प्रशासन ने मेला प्रारंभ होने के पूर्व ही पुख्ता इंतजाम शुरू कर दिए है। जिसमें मेला यात्रियों के लिए सबसे प्रमुख क्षेत्रों सहित अधिक जंगल एवं अंधेरे वाले क्षेत्रों में रोशनी की पर्याप्त व्यवस्था की गई है। इसके अतरिक्त जगह-जगह शिव भक्तों के लिए पेयजल के साथ-साथ चिकित्सा सुविधाएं एवं सुरक्षा की दृष्टि से पुलिस बल भी उपलब्ध कराया जा रहा है।