जितना रकबा उस हिसाब से दवा कम
दवा का छिडक़ाव जिस तरह करना है उस हिसाब से यह दवा सिर्फ २० हजार हैक्टेयर क्षेत्र में ही छिडक़ाव कर खत्म हो गई। जबकि जिले में मक्का दो लाख ७५ हजार हैक्टेयर से ज्यादा क्षेत्र में इस बार बोया गया है। जिले में अब तक का यह सबसे ज्यादा रकबा है। वर्तमान में ही ७० हजार हैक्टेयर से ज्यादा क्षेत्र के लिए दवा की जरूरत है। एेसे में सरकार की यह मदद ऊंट के मुंह में जीरा के समान है। अनुदान पर दवा भी सिर्फ दो हैक्टेयर के लिए मिल रही है। यानी इससे ज्यादा क्षेत्र में फसल किसान ने लगाई है तो उसके लिए उसे दवा बाजार से ही खरीदनी पड़ेगी।
मुसीबत का पता था तो पहले से तैयारी क्यों नही
ध्यान रहे मक्का पर इस साल आर्मी वर्म फॉल कीट के प्रकोप होने की बात चार महीने पहले से ही चल रही थी। विशेषज्ञों ने चेताया भी था कि इस साल इस कीट से बचना मुश्किल है। कीट की प्रकृति के बारे में भी जानकारी लगातार विभाग और सरकार को दी जा रही थी। मक्का उत्पादन के लिए प्रदेश देशभर में पिछले कुछ सालों से अव्वल रह रहा है। छिंदवाड़ा में तो पिछले दो साल से उत्पादन और बिक्री में रिकॉर्ड बना है। एेसे में इस कीट से बचाने के लिए दवाओं की उपलब्धता के लिए पहले से तैयारी विभाग और सरकार ने क्यों नहीं की। स्थानीय अधिकारी तो कुछ कहने की स्थिति में नहीं हैं। वे ऊपर से आदेश और निर्देश मिलने की बात कह रहे हैं, लेकिन इस पूरे मामले में उच्चस्तर पर अधिकारियों, नेताओं की अनदेखी और लापरवाही दिख रही है। जानकारों के अनुसार कीटनाशक दवा कम्पनियों की मिलीभगत की बू भी इसमें आ रही है। उन्हें मालूम है कि इस बार उनकी दवा की मांग कई गुना ज्यादा होनी है। सरकार अनुदान तो किसानों को बाद में देगी, लेकिन वे तो नकद पूरी कीमत पहले ही किसान से वसूल लेंगे। जानकारी के अनुसार किसान संगठन इस सम्बंध में जल्द स्थानीय अधिकारियों के अलावा मुख्यमंत्री से भी इस समस्या केा लेकर मिलने वाले हैं।