scriptHard work: कुम्हारों को करनी पड़ती है ऐसी मेहनत, तब बनकर तैयार होता है दीपक | Hard work: Potters have to do such hard work | Patrika News

Hard work: कुम्हारों को करनी पड़ती है ऐसी मेहनत, तब बनकर तैयार होता है दीपक

locationछिंदवाड़ाPublished: Oct 28, 2021 01:41:53 pm

Submitted by:

ashish mishra

कुम्हार चाक पर दीपक गढऩे में जुटे हुए हैं।

Hard work: कुम्हारों को करनी पड़ती है ऐसी मेहनत, तब बनकर तैयार होता है दीपक

Hard work: कुम्हारों को करनी पड़ती है ऐसी मेहनत, तब बनकर तैयार होता है दीपक


छिंदवाड़ा. दीपों का त्योहार दीपावली का काउंटडाउन शुरु हो चुका है। 4 नवंबर को दीपावली हर्षोल्लास के साथ मनाई जाएगी। घर के हर कोने में मिट्टी के दीपक जलाए जाएंगे। दीप पर्व पर घर-घर मिट्टी के दीपक जलाने का अलग ही महत्व है। इससे घर-आंगन तो रोशन होता ही है इसके साथ ही हमारे घरों में भी समृद्धि की रोशनी आती है। हमारे घरों में समृद्धि की रोशनी लाने के लिए इन दिनों कुम्हार चाक पर दीपक गढऩे में जुटे हुए हैं। कुम्हारों की अथक मेहनत के बाद ही हमें मिट्टी का दीपक मिलता है। हर वर्ष की तरह इस बार भी कुम्हार पूरी तत्परता से जुटे हुए हैं। उम्हें उम्मीद है कि इस बार बाजार उनकी मेहनत का फल देगा। कुम्हारी मोहल्ला निवासी कवल पिंडरे का पूरा परिवार इन दिनों दीपक बनाने में जुटा हुआ है। कवल ने बताया कि हर सामान महंगा हो गया है। बीते वर्षों में तीन हजार रुपए ट्राली मिट्टी मिल जाया करती थी, लेकिन इस बार 4500 रुपए ट्राली मिट्टी मिली है। कवल ने बताया कि मिट्टी को पहले चूरा किया जाता है। इसके बाद मिट्टी को घोलते हैं। आटा की तरह पैरों और हाथों से गूथा जाता है। इसके बाद ही मिट्टी दीया बनाने के लायक होती है। इस प्रक्रिया में एक हफ्ते तक लग जाता है। इसके बाद चाक के सहारे दीया का निर्माण करते हैं। कवल ने बताया कि हर वर्ष दीपावली पर लगभग पन्द्रह हजार दीया तैयार किया जाता है। हालांकि इस बार दस हजार ही दीया बना रहे हैं। महंगाई काफी बढ़ गई है। कंपटीशन भी बढ़ गया है। यहां जबलपुर, नागपुर से दीया व्यापारी लेते आते हैं। ऐसे में लागत मूल्य भी निकालना मुश्किल होता है। दीया बनाने के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं। दस से बारह घंटे लगातार चाक चलता है। तब जाकर दीया तैयार होता है। पिछले वर्ष कोरोना के कारण लॉकडाउन में त्योहार फीका रह गया था। कुम्हारों को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा था। उस समय मिट्टी के व्यापार में भी ग्रहण लगा। गत वर्ष की दीपावली पर इसका खासा असर देखने को मिला था, लेकिर इस वर्ष का दीप पर्व इनके लिए भी उम्मीदें लेकर आया है कि इस बार इनके घर भी रोशन हो सकेंगे, हालांकि कमर तोड़ महंगाई इन्हें भी परेशान किए हुए है। स्थानीय कुम्हार दो महीने पहले से दीपक बनाने के कार्य में जुटे हुए हैं।
मिट्टी महंगी होने से काम प्रभावित
दीया बनाने के कार्य में भले ही कुम्हार दिन-रात लगे हुए हैं, लेकिन उनके चाक की रफ्तार इस वर्ष कुछ धीमी है। इसके पीछे बड़ी वजह महंगाई है। कुम्हारी मोहल्ला में मिट्टी के दीपक तैयार कर रहे कवल ने बताया कि इस काम में काफी समय से जुड़ा हुआ हूं। दीपक बनाने में सबसे बड़ी परेशानी मिट्टी मिलने की है। एक ट्राली मिट्टी के लिए साढ़े चार रुपए देना पड़ रहा है। इस बार दस हजार दीया बनाने का लक्ष्य रखा गया है। उन्होंने बताया कि दस रुपए के पांच या फिर छह दीए बेचेंगे।

कम बिकते हैं दीपक
कवल पिंडरे ने बताया कि दीपावली से पहले दीपक और करवा के साथ साल भर मटके आदि बनाते हैं। दीप पर्व के मौके पर पहले की तुलना में अब दीपक की बिक्री कम होती है। इसका कारण बिजली की झालर भी है। कुछ लोग तो सिर्फ पूजा के लिए ही दीयों की खरीदारी करते हैं। पिछले साल कोरोना से व्यापार प्रभावित हुआ था। इस साल काफी उम्मीद है। उन्होंने बताया कि मिट्टी मोरडोंगरी, जमकुंडा, दमुआ, परासिया से लाई जाती है।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो