मामले में नर्सिंग छात्राओं ने कलेक्टर समेत कई जिम्मेदार अधिकारियों को शिकायत भी की, पर आश्वासन मिलने से चीजों में कोई सुधार नहीं हुआ हैं। स्थिति यह है कि प्रदूषण नियंत्रण विभाग के अधिकारी भी मामले में औपचारिकता बरत रहे है। बता दें कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी डॉ. अविनाश चंद्र करेरा ने उक्त मामले में 9 मार्च 2021 को जांच कराने की बात कही थी, जिसके बावजूद अब तक किसी ने संज्ञान तक नहीं किया हैं।
वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट भी उपयोगहीन –
लाखों रुपए की लागत से वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट बनाया गया, लेकिन बनने के बाद से अब तक उपयोग में नहीं लाया गया हैं। अस्पताल से निकला पानी प्लांट में एकत्रित हो, जिसके लिए सभी डे्रजन सिस्टम को जोड़ा गया हैं। बताया जाता है कि अस्पताल से निकलने वाला दूषित पानी किसी भी जलस्रोत से मिलने पर उसे भी दूषित कर देता हैं, जिससे वह पीने योग्य नहीं होता हैं।
मनुष्य तथा पशुओं को बना सकता हैं गंभीर रोगी –
दूषित पानी किसी भी जलस्रोत में मिलने पर उसे प्रदूषित कर देते हैं। इसके कारण जलस्रोत का जल, पीने अथवा अन्य मानवीय उपयोग के योग्य नहीं रह जाता है तथा प्रदूषण का स्तर बढऩे से मवेशी अथवा कृषि के लिए भी उपयोग में नहीं लाया जा सकता हैं।
इसलिए दूषित जल का समुचित उपचार करना आवश्यक होता है, जिससे अन्य जलस्रोतों पर उसका अनुचित प्रभाव नहीं पड़े। जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम के तहत दूषित जल का निर्धारित मानदण्डों के अनुरूप उपचार किया जाना आवश्यक है।