कलेक्टे्रट परिसर में सोमवार को हांफते हुए इस युवा की व्यथा जिसने भी सुनी,उसने असंवेदनशील हो गए सत्तासीनों और प्रशासन की लालफीताशाही पर तंज कसा। अमरवाड़ा के पास बाबूटोला के पास रहनेवाले बुधलाल बताता है कि दोनों पैर विकलांगता से ग्रस्त है। हाथ भी इतने सशक्त नहीं है। हस्तचलित ट्राइसिकिल नहीं चला पाता। ऐसी स्थिति में उसका गुजारा बैटरीचलित ट्राइसिकिल से संभव है। उसके पास उपसंचालक सामाजिक न्याय का विभागीय संचालक भोपाल को लिखा गया अंतिम सिफारिश पत्र भी है, जिसमें एलिम्का से उसे मोट्रेट ट्राइसिकिल देने के लिए कहा गया है। उसका कहना है कि चार साल से यहीं सब चलता है। आखिर उसका भाग्योदय कब होगा,ऑफीसर कब सुनेंगे? यह सवाल अक्सर उसके मन में घूमता है। जनप्रतिनिधियों से शिकायत की बात करो तो सीएम कमलनाथ को भी उसने अर्जी दी है।
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भूखा प्यासा गांव से आया,फिर बस स्टैण्ड से पैदल चला
दिव्यांग बुधलाल अपनी इस अर्जी को लेकर भूखा-प्यासा अपने गांव से निकला और अमरवाड़ा से बस पकड़कर पहले बस स्टैण्ड आया। फिर एक किमी व्यस्ततम धूल भरी सड़क पर घुटने के बल चलता हुआ कलेक्ट्रेट पहुंचा। उसके पास इतने पैसे नहीं थे कि चाय-भोजन कर पाए। प्रशासन से तो इस मानवीय व्यवहार की उम्मीद नहीं थी। आसपास के लोगों ने तरस खाकर उसे चाय पिलाई और भोजन भी कराया।
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ऐसे न जाने कितने बुधलाल,फिर भी संवेदनहीनता
कलेक्ट्रेट परिसर में आनेवाला दिव्यांग बुधलाल अकेला प्रशासनिक संवेदनहीनता का शिकार नहीं है। उसके जैसे न जाने कितने लोग हर मंगलवार जनसुनवाई में आते हैं। सालों से आवेदन करते-करते बस आश्वासन का घूंट पीकर वापस लौट जाते हैं। कम से कम एक व्यवस्था के तहत उनकी परेशानी और समस्या का हल तो होना चाहिए। ऐसे में जनसुनवाई,सीएम हेल्पलाइन,आपकी सरकार जैसे अन्य मंचों की उपादेयता कहां रह जाएगी।
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