भारतीय संस्कृति की आदर्श परम्परा तप साधना
छिंदवाड़ाPublished: Sep 21, 2018 05:08:11 pm
महान पर्युषण पर्व के अष्टम दिवस उत्तम तप धर्म की आराधना करते हुए ब्रह्मचारिणी सुषमा ने महिलाओं के शंका समाधान बताया ।
भारतीय संस्कृति की आदर्श परम्परा तप साधना
पर्युषण पर्व
भारतीय संस्कृति की आदर्श परम्परा तप साधना अमरवाड़ा. महान पर्युषण पर्व के अष्टम दिवस उत्तम तप धर्म की आराधना करते हुए ब्रह्मचारिणी सुषमा ने महिलाओं के शंका समाधान तत्व चर्चा में बताया कि 16वीं शताब्दी में हुए महान अध्यात्म बादी संत तारण तरण स्वामी महाराज ने तत्वार्थ सूत्र में हमें यह बताया है कि जिस जीव का जिस द्रव्य का जिस समय जैसा जो कुछ होना है वह अपनी तत समय की योग्यता अनुसार हो रहा है और होगा उसे कोई टाल फेर बदल सकता नहीं। भारतीय संस्कृति की आदर्श परंपरा तप साधना के बारे में पंडित धन कुमार ने संबोधन में पंडित पूजा ग्रंथ के आधार पर बताया कि इच्छाओं के निरोध करने को तप कहां है वहां नास्ति से इच्छाओं का अभाव और आस्ति से आत्म स्वरूप में लीनता ही तप है। अज्ञानी जीव करोड़ों वर्ष तक तप करके अपने कर्मों की निर्जरा नहीं कर पाते उससे अधिक निर्जरा ज्ञानी तीन योगों की एकता से कर देता है।
मनुष्य का शरीर एक आध्यात्मिक रथ है जिस में निवास कर रहा आत्मा रथवान है बुद्धि उसका सारथी है। इस रथ को पांच ज्ञानेंद्रियों और पांच कमेंइंद्रियों इन 10 इंद्रियों के घोड़े खींच रहे हैं मन इसकी लगाम है यह रथ इंद्रियों के विषयों की सडक़ पर दौड़ रहा है जिस आत्मा का बुद्धि रूपी साथी जागृत रहेगा। मन की लगाम को खींचकर रखेगा उसके इंद्रियां वश में रहेंगी तथा जिस जीवात्मा का बुद्धि रूपी सारथी सजक सावधान नहीं रहेगा और मन की लगाम को ढीली छोड़ देगा उस आत्मा के रथ को यह इंद्रियां रूप घोड़े कहां ले जाकर गिर आएंगे और आत्मा की क्या गति होगी, यह सब विचार करके जीवन को संयम रखना बनाना ही श्रेष्ठकर है। उत्तम तप धर्म अभी इसी समय जो अनुभूति में आया है उसका अनुभव करो उसी में लीन रहो। ज्ञान पूर्वक अपनी परमात्मा सत्ता का अनुभव होने से यह समस्त विषय कशाय विलय हो जाएंगे। अपने परम पद परमात्मा स्वरूप का उदय होते ही परमात्म स्वरूप का उदय होता है जय जयकार मस्ती है, तब कर्म कली मां होती है उसी समय मुक्ति की प्राप्ति होती है। इस अवसर पर सभी सामाजिक बंधु उपस्थित रहे।