ब्लैक स्पॉट्स में दुर्घटना के लिए जिम्मेदार मार्गों सम्बंधित कमियों के सुधार के लिए प्रस्ताव तैयार करके सक्षम अधिकारी को भेजा जाता है। शॉर्ट टर्म सुधार आवश्यक हुए तो उन्हें तत्काल लागू किया जाता है। इसमें साइन बोर्ड, स्पीड ब्रेकर, रम्बल स्ट्रिप, रोड मार्किंग प्वाइंट, क्रैश, बैरियर लगाना शामिल है। लॉन्ग टर्म सुधारों के लिए भी आवश्यकता अनुसार सर्वेक्षण कर मार्ग से सम्बंधित समस्त फीचर को मार्क करते हुए बेस मैप तैयार करके नियमानुसार डीपीआर तैयार किया जाता है। इसके लिए निविदा भी निकाली जा सकती है, कंसल्टेट से भी अनुबंध के तहत सेवा ली जा सकती है। ब्लैक स्पॉट्स के स्थाई उपाय के लिए जमीन की कमी है तो सक्षम अधिकारी को भूअर्जन के प्रस्ताव भी भेजे जाते हैं। उपायों को लागू किए जाने के बाद इम्पैक्ट एनालिसिस भी किया जाना है। इसमें यह देखा जाता है कि दुर्घटनाओं में कितनी कमी आई है।
दुर्घटना स्थलोंं को माना जाता है ब्लैक स्पॅाट
ऐसे मार्ग जिन पर विगत तीन वर्षों के दौरान पांच दुर्घटनाएं हुई हों या मौत हो चुकी हों, एेसी जगहों को ब्लैक स्पॉट माना जाता है। इनकी जानकारी पुलिस विभाग द्वारा मिलती है। इन स्पॉट्स का निरीक्षण सम्बंधित परिक्षेत्र के इंजीनियर, उस थाना क्षेत्र के पुलिस निरीक्षक एवं रोड सेफ्टी विशेषज्ञ करते हैं। यह समिति प्रारम्भिक रूप से दुर्घटना मार्ग से सम्बंधित कमियों का परीक्षण करती है। दुर्घटना के लिए जिम्मेदार कारणों की रिपोर्ट बनाकर सम्बंधित थाने एवं नगरीय प्रशासन एवं विकास संचालनालय भेजती है। निरीक्षण की टीप फोटोग्राप्स सहित निर्धारित प्रपत्र में भरकर वरिष्ट कार्यालयों में भी भेजी जाती है।
यातायात विभाग बताता है ब्लैक स्पॉट्स
निगम के इंजीनियरों द्वारा यातायात विभाग से सम्पर्क क र ब्लैक स्पॉट चिह्नित किए जाते हैं। उनके उपाय सम्बंधी समस्त डिटेल संचालनालय भेजी जाती है। यह प्रक्रिया पहले भी की जा चुकी है।
अशोक पांडेय, सहायक यंत्री निगम