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दम-सांस की बीमारी के इलाज के लिए बनाया जुगाड़ यंत्र, देखें वीडियो

locationछिंदवाड़ाPublished: Feb 03, 2019 11:45:17 am

Submitted by:

Dinesh Sahu

राहत: जिला अस्पताल के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. श्रीवास्तव ने महंगे यंत्रों का विकल्प किया तैयार, मरीजों पर रहा पूरा सफल, जुगाड़ के इंस्टूमेंट से दूर होगी सांस की तकलीफ

जुगाड़ के इंस्टूमेंट से दूर होगी सांस की तकलीफ

राहत: जिला अस्पताल के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. श्रीवास्तव ने महंगे यंत्रों का विकल्प किया तैयार, मरीजों पर रहा पूरा सफल
जुगाड़ के इंस्टूमेंट से दूर होगी सांस की तकलीफ

छिंदवाड़ा. सांस लेने में परेशानी, बार-बार सर्दी-जुखाम होना समेत दमा की बीमारी से जूझ रहे बच्चों के लिए राहत भरी खबर है। इन परेशानियों से राहत के लिए लोग घर पर ही बहुत कम खर्च में इंस्टूमेंट तैयार कर सकते हैं और अपने बच्चों को स्वयं उपचार दे सकते हैं। मेडिकल कॉलेज छिंदवाड़ा के पेडियेट्रिक विभाग के प्रोफेसर डॉ. जेएम श्रीवास्तव ने इसमेें अहम भूमिका निभाई है। दरअसल डॉ. श्रीवास्तव ने उक्त बीमारी से राहत दिलाने के उद्देश्य से ‘स्पेशा’ नामक यंत्र तैयार किया है।
जो कि एक प्लास्टिक की छोटी बॉटल और मास्क के रूप में डिस्पोजल कप का उपयोग किया है। ऐसा यंत्र बाजार से करीब 1000 रुपए में मिलता है, लेकिन जुगाड़ के जरिए बिना कुछ खर्च किए इसे तैयार किया जा सकता है। डॉ. श्रीवास्तव ने बताया कि इसके अलावा बाजार में करीब ढाई लाख रुपए में मिलने वाला ऑक्सीजन दिए जाने का बबल्सीपेप यंत्र को मॉडीफाई कर तैयार किया है। सभी अस्पतालों में इस इंस्टूमेंट का उपयोग किया जा सकता है। इसके माध्यम से बच्चों के लंग्स में होने वाली बीमारी, सिकुड़ी हुई नसों को ओपन किया जाता है। इस प्रक्रिया के बाद मरीज पूरी तरह से ठीक हो जाता है।

सफल रहा प्रयोग


स्पेशा तथा बबल्सीपेप इंस्टूमेंट का प्रयोग कुछ मरीजों पर भी किया गया जिसका परिणाम सकारात्मक मिला है। कुछ विभागीय प्रक्रिया के बाद इसे तैयार करने के लिए अन्य लोगों को भी प्रशिक्षण दिया जा सकता है। ये इंस्टूमेंट उपयोग में बेहद आसान और किफायती हैं।

ऐसे काम करता है बबल्सीपेप


जुगाड़ से बना बबल्सीपेप ऑक्सीजन सिलेंडर से जोड़ा जाता है, जिसमें लगे एक यंत्र से फ्लो देखा जाता है। इसके बाद नली को मरीज की नाक में डाला जाता है। जहां से उसे ऑक्सीजन मिलती है तथा एक ग्लूकोस की बॉटल में पानी भरकर ऑक्सीजन का प्रेशर परीक्षण किया जाता है। जबकि ढाई लाख के यंत्र की पूरी प्रक्रिया कम्प्यूटराइजड होती है। इसमें काफी खर्च होता है, लेकिन जुगाड़ के यंत्र में यह किफायती है।
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