दमुआ विधानसभा का विलय जुन्नारदेव में होने के बाद जिले की सबसे बड़ी विधानसभा जुन्नारदेव हो गई है। यहां सबसे ज्यादा कांग्रेस की सत्ता रही तथा विधायकों को मंत्रालय भी मिले। वहीं लुभावने वादों के साथ सत्ता में आई भाजपा से भी निराशा ही हाथ लगी। कृषि उपज मंडी, बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं, मॉडल रेलवे स्टेशन, रोडवेज की आज भी दरकार है।
जुन्नारदेव का स्वरूप वर्षों पहले जैसा था, आज भी वैसा ही है। सीमित बाजार क्षेत्र, मनोरंजन के लिए पार्क, पेयजल, चौड़ी सडक़ें, आवारा पशुओं पर नियंत्रण, पाॢकंग व्यवस्था, शिक्षा आदि में सुधार नहीं सका है। बाजार का मुख्य मार्ग डिवाइडर बनाकर दो भागों में बांटा तो गया, पर इससे यातायात व्यवस्था और बिगड़ गई। पहले मार्ग के एक ओर दुकानें लगती थीं, अब दोनों तरफ लगने और अतिक्रमण से मार्ग पैदल चलने लायक भी नहीं बचा।
शासकीय बस अड्डा बनाया गया, लेकिन रिस्पॉन्स नहीं मिला तो नगर पालिका कार्यालय खुल गया। अब यहां-वहां वाहन खडे़ रहते हैं। बारिश के समय अक्सर नदी-नालों में पानी रोड के ऊपर से बहता है, जिसके चलते घंटों मार्ग बाधित हो जाता है। वर्षों से यहां पर ओवर ब्रिज निर्माण की मांग की जा रही है पर नेता बदल गए, लेकिन किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। तो लोगों ने रेलवे पुल के नीचे से वैकल्पिक मार्ग बना लिया।
छिंदवाड़ा-दमुआ मार्ग पर स्थित चर्च तिराहा यहां से जुन्नारदेव नगर में प्रवेश होता है। यातायात नियमों का पालन नहीं होने से इस मार्ग पर अक्सर हादसे होने का भय बना रहता है। पुलिस, न बैरिकेट्स, न ही साइन बोर्ड लगा होने से खतरों भरा सफर हर दिन होता है। सालों पहले नगर में डब्ल्यूसीएल का वेलफेयर हॉस्पिटल, मिशन हॉस्पिटल, रेलवे हॉस्पिटल तथा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र संचालित हुआ करता था। अब मात्र एक ही हॉस्पिटल बचा है। यहां भी ज्यादातर मरीजों को जिला अस्पताल रैफर कर दिया जाता है।
रोजगार के नए विकल्प नहीं बन सके
नगर की आर्थिक निर्भरता ज्यादातर रेलवे, खदान तथा प्रशासकीय संस्थाओं पर टिकी है। वर्तमान में लगभग क्षेत्र की सभी खदानें बंद हो गई हंै या होने की कगार पर हैं। रेलवे का कार्य क्षेत्र भी सीमित हो गया है। इससे नगर का बाजार टूट गया तथा बेरोजगारी का ग्राफ बढ़ गया। इससे क्राइम की घटनाएं बढऩे लगी, जुंआ, सट्टा, लूट-पाट आदि घटनाएं बड़ी, इसके बावजूद किसी भी राजनीतिक दल ने क्षेत्र में रोजगार के नए आयामों को नहीं खोजा।
विधायक व प्रतिद्वंद्वी की सक्रियता
विधानसभा चुनाव 2013 के बाद भाजपा के नथनशाह कवरेती की जीत हुई तो कांग्रेस के सुनील उइके के हाथ निराशा लगी। स्थानीयता का मुद्दा कांग्रेस प्रत्याशी पर हावी होना बताया जाता है। हालांकि दोनों ही दलों के नेता आने वाले चुनाव की तैयारी में सक्रिय नजर आए। हालांकि सत्ता में आने से वर्तमान विधायक कवरेती का जनता से नजदीकी कम देखने को मिली वहीं उइके और अधिक सक्रिय नजर आए।
2013 प्रत्याशी हार जीत का अंतर
74319 मत मिले भाजपा के नथनशाह कवरेती को
54198 मत मिले कांग्रेस के सुनील उइके को
20121 कवरेती की जीत का अंतर