जिला मुख्यालय से लेकर विकासखण्ड मुख्यालय तक सबसे अधिक सामग्री खुली ही बेची जा रही है। इस पर प्रभावी कार्रवाई की जिम्मेदारी स्वास्थ्य विभाग और खाद्य विभाग की है, किन्तु पर्याप्त स्टॉफ होने के बावजूद खुली सामग्री की बिक्री पर रोक लगाने के लिए अभी तक कोई अभियान सम्बंधित विभागों की ओर से नहीं प्रारंभ किया गया है। यह बात जरूर है कि विभाग को मिलावटी साग्री के जांच सेम्पल की रिपोर्ट आने का इंतजार महीनों तक करना पड़ता है, लेकिन खुली सामग्री की बिक्री को लेकर विभाग का अमला दुकानों पर जांच कर उचित दिशा निर्देश दे सकते हैं और कार्रवाई भी कर सकते हैं। खाद्य सुरक्षा कानून (फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड एक्ट-2006) के तहत मिलावटी खुले में सामग्री बेचने वाले दुकानदारों पर जुर्माने का प्रावधान है और उन्हें जेल भी जाना पड़ सकता है। पांच अगस्त 2011 को लोकसभा में पारित खाद्य सुरक्षा कानून के तहत 12 लाख रुपए सालाना आय वाले व्यवसायी को खाद्य लाइसेंस लेना भी अनिवार्य है। इस कानून के तहत खुले में बेची जा रही और मिलावटी सामग्री के सैंपल भरने का प्रावधान है। सैंपल फेल होने की स्थिति में दुकानदार के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जानी तय है। इस स्थिति में 10 लाख रुपए तक जुर्माना और छह साल तक की सजा भी हो सकती है।
कानून तोड़ा तो यह है सजा
-जिस प्रकार का खाद्य पदार्थ मांगा गया है, वैसा नहीं दिए जाने पर शिकायत होने और सही पाए जाने पर दो लाख रुपए के जुर्माने का प्रावधान है। घटिया स्तर की खाद्य सामग्री बेचने पर तीन लाख रुपए का जुर्माना। किसी भी खाद्य पदार्थ का गलत या भ्रम पैदा करने वाले विज्ञापन देने पर दस लाख का अर्थदंड। खाद्य सुरक्षा अधिकारी की तरफ से दिए गए निर्देश का पालन नहीं करने पर दो लाख रुपए जुर्माना। जुर्माने की रकम समय पर जमा नहीं कराने पर भू राजस्व के रूप में वसूली ऐसा नहीं होने पर लाइसेंस निलंबित किया जाएगा। निर्धारित समय में जुर्माना अदा नहीं करने पर एक से तीन साल की कैद। खाद्य सुरक्षा कानून का उल्लंघन करने पर पांच लाख रुपए जुर्माना और छह साल की सजा सुनाई जाएगी। विभाग को झूठी सूचना या दस्तावेज देने पर तीन महीने की कैद और दो लाख रुपए का जुर्माना चुकाना पड़ेगा। सबसे जरूरी बात यह कि बगैर लाइसेंस खाद्य वस्तुओं का व्यापार करने पर छह महीने की कैद तथा पांच लाख रुपए का जुर्माने का प्रावधान है।