नई खदानों की राह नहीं है आसान
चार नई खदानों को लेकर कोयलांचल में नई बहस छिड़ गई है। दरअसल प्रबंधन भूमिगत कोयला खदानें बंद कर रहा है और नई भूमिगत कोयला खदान की स्वीकृति मिलने के बाद जटिल प्रक्रियाओं के चलते कोयला उत्खनन में लगभग सात से आठ वर्ष लग जाते हैं। वहीं ओपन कास्ट खदान तीन-चार वर्ष में चालू हो जाती हैं, लेकिन इसमे मेनपावर बहुत कम लगता है और जीवनकाल चंद वर्षो का रहता है। पेंच में सबसे पहले उत्पादन जमुनिया पठार खदान से होगा उसमे भी अभी दो से तीन वर्ष का समय लगेगा। यहां पर ड्रिफ्टिंग का कार्य धीमी गति से चल रहा है और लगभग आधा बाकी है। धनकशां खदान की निविदा नहीं बुलाई गयी है। यह खदान कास्ट और प्राफिट बेस में फंस गई है। मगरई एवं ठेसगोरा ओपनकास्ट है जिसका अभी तक प्रोजेक्ट तैयार नहीं हुआ है। सोनपुर में प्राथमिक स्तर पर सीएमपीआईडीएल द्वारा कोयला की जांच के लिए बोर कराया जा रहा है।
नई कोयला परियोजनाओं के प्रारंभ करने के पूर्व कास्ट एण्ड प्राफिट बेस पर ध्यान दिया जाता है। इसके कारण भी पेंच कन्हान की हालत खस्ता हुई है। यहां का कोयला लो ग्रेड का होने के कारण खरीदार नही मिलते हैं और 12 प्रतिशत से अधिक प्रॉफिट पर खदानें खोली जाती है। गत दिनों यहां के कोयला का ग्रेड घटाने से उसकी कीमत बाजार में कम हो गई है जिसके कारण घाटा और बढ गया है।