एक टोपी तुम्हारे सारे दुष्कर्मो को ढक सकती है रचना पाठ कार्यक्रम में गाजियाबाद के विमल कुमार ने यह चांद मुझे दे दो, बच्चे जब मर रहे थे, एक गधे की उत्तर कथा और अन्य रचनायें प्रस्तुत की । उन्होंने पढ़ा कि ‘है इतना अंधेरा यहां/कि थोड़ी रोशनी के लिये/यह चांद मुझे दे दो’ । वरिष्ठ साहित्यकार मोहन डेहरिया ने नाचना, कौन गा रहा है यह गीत व मुझे दे दो कवितायें पढ़ी । उन्होंने पढ़ा कि ‘नाचना भी एक उपाय है/पापियों के लिये/अपनी आत्मा की कुबड़ से छुटकारा के लिये/एक सच्चा और गहरा नाच ही कर सकता है/मनुष्यों का ईश्वर से साक्षात्कार’ । वरिष्ठ साहित्यकार राजेश झरपुरे ने टोपी, वे बुरे नहीं है, सफल आदमी, हनीफ भाई लड़ाई अभी बाकी है आदि रचनायें पढ़ीं। उन्होंने पढ़ा कि ‘एक टोपी तुम्हारे सारे दुष्कर्मो को ढक सकती है/एक टोपी तुम्हारे सारे दोषों को प्रकट कर सकती है/एक टोपी तुम्हारे खिलाफ दुश्मनों को बुला सकती है/अब फैसला आपका है/आप सिर बचाना चाहेंगे या टोपी’ । वरिष्ठ साहित्यकार हेमेन्द्र कुमार राय ने बिना छत के घर के बारे में, कल्पवृक्ष, जिसे वह अपना घर कहती है, उस बरस आदि कवितायें पढ़ी । उन्होंने पढ़ा कि ‘क्यों नहीं किया उसने कभी अपना कायाकल्प/किसी दिन मिलने पर पूछूंगा उससे/उसका दु:ख’ । युवा कवि अनिल करमेले ने टेलीग्राम, गोरे रंग का मर्सिया, पहला प्रेम, मै इस तरह रहूं, यह धरती के आराम करने का समय है, चाह आदि कवितायें पढ़ीं । उन्होंने पढ़ा कि ‘मैं इस तरह रहूं/जैसे बची रहती है आखिरी उम्मीद/मैं स्वाद की तरह रहूं/लोगों की यादों में/रहूं जरूरत बनकर नमक की तरह/मैं गर्भ की तरह रहूं/ और पूरी दुनिया रहे मेरे आसपास/मां की तरह’ ।