आदिवासियों के लिए कल्पवृक्ष के समान है महुआ
आदिवासी अंंचल इन दिनों महुए की मादकता से महक रहा है। आदिवासी महुए के वृक्ष को कल्प वृक्ष की संज्ञा देते हैं। इन दिनों बड़े से लेकर बच्चे तक पौ फू टते ही हाथ में टोकरी लिए जंगल व खेतों की और निकल पड़ते हैं। महुआ फूल का उपयोग शराब बनाने के लिए भी किया जाता है। यही एक वजह है कि महुआ बदनाम हो गया और इसके औषधीय गुणों को नजर अंदाज कर दिया गया है।
छिंदवाड़ा
Updated: April 21, 2022 06:05:45 pm
छिन्दवाड़ा/ मारुड़. आदिवासी अंंचल इन दिनों महुए की मादकता से महक रहा है। महुआ का वृक्ष आदिवासियों के
लिए रोजगार का साधन भी बना हुआ है। यह वृक्ष उनके लिए किसी वरदान से कम नही है। आदिवासी महुए के वृक्ष को कल्प वृक्ष की संज्ञा देते हैं। इन दिनों बड़े से लेकर बच्चे तक पौ फू टते ही हाथ में टोकरी लिए जंगल व खेतों की और निकल पड़ते हैं। महुआ फूल का उपयोग शराब बनाने के लिए भी किया जाता है। यही एक वजह है कि महुआ बदनाम हो गया और इसके औषधीय गुणों को नजर अंदाज कर दिया गया है। खेतों व जंगलों में बड़ी संख्या में महुआ पेड़ हंै। यह औषधि गुणों से भरपूर है। इसके फूल ही नहीं फ ल भी उपयोगी होते है। मार्च-अप्रैल में इस पर फूलों की बहार आती है। जून में फल लगते हैं। तीन माह के सीजन में हजारों टन महुआ फूल और फ ल संग्रहित होता है ,लाखों का माल बिकता है, लेकिन आदिवासियों का जीवन स्तर नहीं बदला । इसका एक कारण सरकार द्वार आदिवासियों की उपेक्षा है। महुआ से सिर्फ शराब ही नहीं बनती। यह आदिवासियों का खाद् पदार्थ भी है। महाराष्ट्र में महुआ से शराब बनती है जिसके चलते वहां इसके खुले में बिक्री पर प्रतिबंध है। छत्त़ीसगढ में सरकार की पहल पर महुआ फूल की चटनी और अचार भी बनाया जाने लगा है। माना जाता है कि आदिवासी परिवार सीजन के दिनों में करीब तीन क्विंटल फूल और एक क्विंटल
फ ल संग्रहित करता है। विपणन की सही व्यवस्था नहीं है। औने-पौने दाम में बेचने को मजबूर है। सीजन में बिचौलिए 25 से 30 रुपए प्रति किलो महुआ फूल और 40 से 45 रुपए फ ल खरीद लेते हैं। सीजन के बाद वे दोगुने भाव से
बेच कर मुनाफ ा कमाते है। सरकार अगर मंडी में व्यवस्था करे तो इनके जीवनस्तर में सुधार हो सकता है।

Mahua is like a Kalpavriksha for the tribals
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