छिंदवाड़ा

वन, राजस्व व ट्राइबल के बीच फंसे दो हजार से अधिक वनाधिकार दावे

तीन हजार निरस्त दावों की फाइल में सीमाओं और पुराने कब्जों की समस्या

छिंदवाड़ाAug 03, 2020 / 05:15 pm

prabha shankar

In the greed of pattas, tribals will come to clean the forests

छिंदवाड़ा/ वनभूमि पर काबिज होने के दो हजार से अधिक दावे अभी भी वन, राजस्व और आदिम जाति कल्याण विभाग के बीच फंसे हैं, जिनकी गुत्थी सुलझाने में अधिकारियों को पसीना आ रहा है। तीन हजार निरस्त दावों की एक साल से चल रही कवायद में अभी 633 जिला स्तर पर मान्य हो पाए हैं। इसकी समीक्षा फिर राज्य के अपर मुखय सचिव करेंगे।
आदिम जाति कल्याण विभाग की मानें तो अनुसूचित जाति एवं अन्य परंपरागत वन निवासी अधिनियम 2006 में वनभूमि पर 50 साल से काबिज वनवासियों को चार हैक्टेयर जमीन दिए जाने का प्रावधान के तहत अब तक व्यक्तिगत स्तर पर 9157 और सामुदायिक स्तर पर 1525 वनभूमि दावे स्वीकृत कर पट्टे वितरित किए गए हैं। इस प्रक्रिया में 3078 दावे निरस्त कर दिए
गए थे।
राज्य शासन के आदेश पर पिछले एक साल से इन दावों के पुन: परीक्षण की कार्यवाहीं फाइलों में चल रही है। शिवराज सरकार आने के बाद इस प्रक्रिया पर हर 15 दिन में वीडियो कॉन्फ्रेंस हो रही है और निराकृत दावों की जानकारी मांगी जा रही है।
अब तक 633 निरस्त दावों को जिला समिति द्वारा मान्य किए जाने की जानकारी दी गई है। अधिकारियों का कहना है कि निरस्त दावों में से ज्यादा हुआ तो चार सौ दावे और मान्य हो सकते हैं।

कानून बनने के बाद ज्यादा कब्जे
वन अधिकारी बताते हैं कि वनाधिकार कानून लागू होने के बाद वनवासियों ने जंगलों को काट कर जमीन पर ज्यादा कब्जे कर लिए। इससे उनके 50 साल पुराने कब्जे की पहचान करना मुश्किल हो गया है। पर्यावरण के लिए वनों को बचाना भी जरूरी है। पहले उनके अनापेक्षित दावे निरस्त किए गए थे। अब फिर से परीक्षण और उन्हें देने में परेशानी आ रही है।

एक दावे पर तीन चरण की प्रक्रिया
वनाधिकार के एक निरस्त दावे के परीक्षण में पहले ग्राम वन समिति वनभूमि और कब्जाधारक के रिकॉर्ड की जांच करती है। फिर उसे डिप्टी रेंजर, रेंजर, एसडीएम की समिति देखती है। उसके बाद कलेक्टर स्तर पर बनी समिति अंतिम मुहर लगाती है। इन चैनलों को पार करने पर काफी समय लगता है।

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