Navaratri: एक दिशा में माता हिंगलाज तो दूसरी दिशा में बैठी है कपुर्दा वाली मां
छिंदवाड़ाPublished: Oct 22, 2023 03:05:33 pm
ख्याति ऐसी ही सैकड़ों किमी दूर से आते है भक्त


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छिंदवाड़ा. जिले में स्थित मां दुर्गा मंदिरों की ख्याति दूर-दूर तक फैलती जा रही है। मान्यता है कि इन मंदिरों में सच्चे मन से जो कामना की जाती है वह पूरी हो जाती है। एक तरफ हिंगलाज मंदिर तो दूसरा कपुर्दा माता की मंदिर की विशेष ख्याति है। जुन्नारदेव के पास अंबाड़ा में स्थित माता हिंगलाज मंदिर के दर्शन के लिए नवरात्र में हजारों की संख्या में भक्त उमड़ रहे हैं। कहा जाता है कि मां दुर्गा की 51 शक्तिपीठों में सबसे पहला शक्तिपीठ पाकिस्तान के बलूचिस्तान में है। मां हिंगलाज वहां मस्तिष्क के रूप में विद्यमान है। मां सती का मस्तिष्क दो जगहों पर गिरा था, एक बलूचिस्तान में गिरा और एक राजस्थान में। बलूचिस्तान अब पाकिस्तान में है और राजस्थान में विराजी मां हिंगलाज की प्रतिमा को कुछ भक्त वर्षों पहले छिंदवाड़ा जिले में ले आए थे। बताया जाता है कि राजस्थान के राजा काठियावार क्षत्रिय कुल देवी के रूप में माता हिंगलाज की पूजा करने लगे तथा कालांतर में उनके वंशज जीविकोपार्जन के लिए छिंदवाड़ा में माता की प्रतिमा सहित आ गए और विधिवत पूजन कर बडक़ुही नंबर दो त्रिवेदी माइन के पास मूर्ति को स्थापित कर दिया गया। बताया जाता है कि प्रतिमा पाताललोक से स्वयं प्रगट हुई थी। वर्ष 1907 के आसपास अंग्रेजों ने खदान क्षेत्र के पास सीआरओ कैम्प का निर्माण कराने के लिए मूर्ति का हटाने का प्रयास किया, लेकिन असफल रहे। इसके बाद माता हिंगलाज ने अंग्रेज को स्वप्न में मूर्ति नहीं हटाने की चेतावनी दी। लेकिन अंग्रेज ने मूर्ति को हटाने के लिए दोबारा निर्देश दे दिए। इस बात से माता नाराज हो गई तथा क्षेत्र के घने जंगलों के बीच इमली के पेड़ के नीचे आ गई। इस संबंध की सूचना सपने में पुरुषोत्तम ठेकेदार को दी। इसके बाद ठेकेदार ने तूफानी बाबा को साथ लेकर माता को खोजकर छोटी सी मढिय़ा का निर्माण करवाया। छिंदवाड़ा में मां हिंगलाज का मंदिर काफी प्रसिद्ध है। दूर-दराज से लोग माता के दर्शन करने आते हैं। मान्यता है कि मां के दर पर जो कोई आया वह खाली हाथ नहीं गया। सच्चे मन से मांगी मुराद माता पूरी करती हैं।