छिंदवाड़ा

जन्मदिन पर याद किया आजादी दिलाने वाले इस नेता को, आप भी जानें त्याग

सुभाष टापू पर कार्यक्रम : ध्वज वंदना के साथ स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने दी सलामी

छिंदवाड़ाJan 24, 2020 / 12:51 pm

Rajendra Sharma

Netaji Subhash Chandra’s birth anniversary celebrated

स्कूली बच्चों ने देश-भक्ति से ओत-प्रोत प्रस्तुतियां दीं
छिंदवाड़ा/ ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा’ नारा देने वाले और देश के स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख भूमिका निभाने वाले नेताजी सुभाषचंद्र की जयंती गुरुवार को शहर में मनाई गई। विभिन्न संगठनों ने छोटा तालाब स्थित सुभाष टापू पर पहुंचकर नेताजी को स्मरण किया और देश को स्वतंत्रता दिलाने के लिए उनके योगदान को याद किया। स्वतंत्रता सेनानियों के संगठन ने यहां विशेष कार्यक्रम किया।
झंडावंदन के बाद नेताजी की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित किए गए। देश को आजादी दिलाने में उनके योगदान को भी याद किया गया। इस मौके पर स्कूली बच्चे भी रैली निकालकर यहां पहुंचे। सभी ने नेताजी की प्रतिमा के समक्ष वंदना की और सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए। स्कूली बच्चों ने देशभक्ति गीतों का गायन किया। इस दौरान बच्चे नेताजी सुभाषचंद्र बोस और भारत माता की वेशभूषा में पहुंचे थे।
सेवादल ने निकाली वाहन रैली : कांग्रेस सेवादल ने गुरुवार को स्टेडियम के पास से दुपहिया वाहन रैली निकली जो शहर के विभिन्न क्षेत्रों से होती हुई सुभाष टापू पहुंची। ड्रेस कोड में आए सेवादल सदस्यों ने यहां नेताजी की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया और राष्ट्रगीत गाया। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उनके योगदान को याद किया गया। सेवादल के पदाधिकारी, सदस्यों के साथ महिला सेवादल की पदाधिकारी और सदस्य भी उपस्थित थीं।
अभाविप ने मनाई नेताजी सुभाषचंद्र बोस जयंती

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने गुरुवार को नेता जी सुभाषचंद्र बोस जयंती मनाई। इस अवसर पर छोटा तालाब स्थित टापू पर कार्यक्रम आयोजित किया गया। अभाविप ने यहां नेता जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। इस अवसर पर अतिथि भूतपूर्व सैनिक मोहन घंघारे, विशेष अतिथि निरपत सिंह टेकरे, सुनील सिंधिया मौजूद रहे। अतिथियों ने नेता जी के जीवन पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम में प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य इंद्रजीत पटेल, जिला सहसंयोजक सन्नी बाथरे, अदिति राकेश, भाग संयोजक उज्ज्वल पटेल, नगर मंत्री समीर दुबे, नगर सह मंत्री जितेश पटेल सहित अन्य मौजूद रहे।
छिंदवाड़ा. सर्व जागृृति गण (सजग) परिषद से जुड़े लोगों ने सुभाषचंद्र बोस जयंती मनाई। संस्था के संयोजक कृपाशंकर यादव ने बताया कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस जयंती पर प्रात: आठ से 10 बजे तक सजग कार्यालय में संगोष्ठी आयोजित हुई। नगर के छोटा तालाब स्थित सुभाष पार्क एवं सैनिक कल्याण कार्यालय के पास, पी.डब्लू.डी. रेस्ट हाउस परिसर में स्थापित शहीद स्मारक परिसर में पौधरोपण किया गया।
जन्म 23 जनवरी 1897 को हुआ था

सुभाष चन्द्र बोस (बांग्ला में उच्चारण- शुभाष चॉन्द्रो बोशु,) का जन्म 23 जनवरी 1897 को हुआ था। विवादस्पद मृत्यु 18 अगस्त 1945 को हुई थी। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को ओडि़शा के कटक शहर में हिन्दू कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस और मां का नाम प्रभावती था। प्रभावती और जानकीनाथ बोस की कुल मिलाकर 14 सन्तानें थी जिसमें 6 बेटियां और 8 बेटे थे। सुभाष उनकी नौवीं सन्तान और पांचवें बेटे थे। सुभाषचन्द्र बोस का जन्म स्थान कटक, बंगाल प्रेसीडेंसी का ओडि़सा डिवीजन, ब्रिटिश भारत,राष्ट्रीयता-भारतीय,शिक्षा बीए (आनर्स) शिक्षा प्राप्त की कलकत्ता विश्वविद्यालय, पदवी अध्यक्ष (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)(1938) सुप्रीम कमाण्डर आजाद हिन्द फौज प्रसिद्धि कारण भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रणी सेनानी तथा सबसे बड़े नेता राजनीतिक पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 1921-1940, फॉरवर्ड ब्लॉक 1939-1940, धार्मिक मान्यता हिन्दू,जीवनसाथी-एमिली शेंकल (1937 में विवाह किन्तु जनता को 1993 में पता चला) बच्चे अनिता बोस फाफ,संबंधी शरतचन्द्र बोस भाई, शिशिर कुमार बोस भतीजा। सुभाष चन्द्र बोस जो नेता जी के नाम से भी जाने जाते हैं, भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रणी तथा सबसे बड़े नेता थे। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, अंग्रेजों के खिलाफ लडऩे के लिए, उन्होंने जापान के सहयोग से आजाद हिन्द फौज का गठन किया था। उनके द्वारा दिया गया जय हिन्द का नारा भारत का राष्ट्रीय नारा, बन गया है। ‘‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा‘‘ का नारा भी उनका था जो उस समय अत्यधिक प्रचलन में आया। सुभाषबाबू और जवाहरलाल नेहरू को पूर्ण स्वराज की मांग से पीछे हटना मंजूर नहीं था। अन्त में यह तय किया गया कि अंग्रेज सरकार को डोमिनियन स्टेटस देने के लिये एक साल का वक्त दिया जाये। अगर एक साल में अंग्रेज सरकार ने यह माँग पूरी नहीं की तो कांग्रेस पूर्ण स्वराज की मांग करेगी। परन्तु अंग्रेज सरकार ने यह माँग पूरी नहीं की। इसलिये 1930 में जब कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में लाहौर में हुआ तब ऐसा तय किया गया कि 26 जनवरी का दिन स्वतन्त्रता दिवस के रूप में मनाया जाएगा।
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