स्कूल भवन के अभाव में दो दर्जन विद्यार्थी विभिन्न प्रकार की समस्याओं से जूझ रहे हैं। मध्याह्न भोजन बनाने के लिए भी जगह की व्यवस्था नहीं है। मध्याह्न भोजन आंगनबाड़ी के शौचालय के कमरे में तैयार होता है।
पांच सालों से यह स्थिति है, लेकिन कई बार गुहार लगाने के बाद भी शासन, प्रशासन और जनप्रतिनिधियों के कानों में जूं तक नहीं रेंगी। प्रधानपाठक ने कई दफा शिक्षा विभाग समेत उच्चाधिकारियों को पत्र प्रेषित किया, लेकिन हर बार निराशा ही हाथ लगी। इससे साफ जाहिर है कि जिम्मेदार अधिकारी ही सरकारी स्कूलों की स्थिति सुधारने में रुचि नहीं ले रहे हैं।
किताबें, गणवेश, साइकिल, भोजन समेत सभी प्रकार की सुविधाएं मुहैया कराई जा रहीं हैं। शिक्षकों की फौज होने के बाद भी सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर लगातार गिरता जा रहा है। यही वजह है कि पालक निजी स्कूलों में दाखिला को प्राथमिकता दे रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्र की गरीब जनता निजी स्कूलों की भारी भरकम फीस देने में असमर्थ है, ऐसे में उनके सामने बच्चों को पढ़ाने का एक मात्र स्थान सरकारी स्कूल ही नजर आता है, लेकिन यहां मिल रही निम्नस्तर की शिक्षा मासूमों के सपनों को रौंद रही है। सरकारी स्कूलों की स्थिति सुधारने के लिए सरकार को वर्तमान में संचालित योजनाओं की समीक्षा करनी होगी। प्रभावी और कारगर कदम उठाने होंगे। वरिष्ठ अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करनी होगी, नहीं तो शिक्षा का अधिकार मात्र सपना ही रह जाएगा।