छिंदवाड़ा जिले के शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय सारना में संकुल प्राचार्य के निरीक्षण में दोपहर तीन बजे ही ताला लटका मिला। स्कूल में न शिक्षक थे और न ही बच्चे। इसी तरह सिवनी जिले के शासकीय प्राथमिक एवं उन्नयन माध्यमिक शाला ढुटेरा में पिछले दिनों दोपहर १२ बजे तक विद्यार्थी शिक्षकों की राह देखते रहे। विद्यार्थियों ने निर्धारित समय सुबह १०.३० बजे स्कूल का ताला खोला, साफ-सफाई की और पढऩे के लिए मास्टरजी के आने का इंतजार करते रहे। कुरई ब्लॉक के प्राथमिक शाला डुंगरिया में पदस्थ दोनों शिक्षक २४ फरवरी को एक घंटा की देरी से स्कूल पहुंचे। यह उदाहरण मात्र हैं।
विभागीय अधिकारियों के निरीक्षण में इस तरह के मामले हमेशा सामने आ रहे हैं। ऐसे में शासकीय स्कूलों में शिक्षा का स्तर सुधारने के सारे प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं, जब शिक्षा के मंदिर में शिक्षक ही नहीं रहेंगे तो पढ़ाई कैसे संभव है। सरकार यूनिफॉर्म, कॉपी किताब, मध्याह्न भोजन, साइकिल से लेकर सभी सुविधाएं मुहैया करा रही है, फिर शासकीय स्कूलों की दशा और दिशा नहीं बदल रही है।
शासकीय स्कूलों में लगातार शिक्षा की गुणवत्ता गिरती जा रही है। पालकों का मोहभंग होता जा रहा है, यही वजह है कि बड़ी संख्या में विद्यार्थी निजी स्कूलों में प्रवेश ले रहे हैं। गरीब और आम लोगों के लिए निजी स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ा पाना संभव नहीं है, क्योंकि यहां फीस, कॉपी-किताब, यूनिफॉर्म और वाहन का खर्च इतना ज्यादा होता है कि लोगों की कमर टूट जाती है। फिर भी परिजन भविष्य की खातिर कर्ज लेकर भी बच्चों को पढ़ाते हैं। प्रतिवर्ष सैकड़ों की संख्या में निजी स्कूल आरम्भ हो रहे हैं, यहां बच्चे भी प्रवेश ले रहे हैं। शासकीय स्कूलों में काफी तेजी से विद्यार्थियों की संख्या कम हो रही है, जिसकी वजह से हर साल सैकड़ों स्कूल बंद करने पड़ रहे हैं। अगर समय रहते शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए आमूलचूल परिवर्तन नहीं किए गए तो शासकीय स्कूलों की स्थिति बद से बदतर हो जाएगी।
ऐसा भी नहीं है कि सभी सरकारी स्कूलों में यही स्थिति है, आज भी कई स्कूल ऐसे हैं जो प्रतिमान स्थापित कर रहे हैं। यहां के पढ़े बच्चे प्रतियोगी परीक्षाओं में टॉप कर रहे हैं और बड़े पोस्टों की शोभा बढ़ा रहे हैं। इन स्कूलों में प्रवेश लेने के लिए होड़ मची हुई है। अगर कुछ स्कूल अच्छा रिजल्ट दे रहे हैं तो सभी स्कूलों में सुधार की संभावनाएं हैं, बशर्ते वहां के शिक्षकों को अपनी जिम्मेदारी का एहसास हो। पूरा ध्यान शिक्षा के स्तर को सुधारने, बच्चों को पढ़ाने और अपने पद की गरिमा को बनाए रखने में बिताएं, क्योंकि आप ही व्यक्ति और समाज के निर्माता हैं।