पूरे मुहल्ले में होते थे दो चार टीवी परतला निवासी वीके शर्मा बताते हैं कि सन.्85 से 90 के बीच मुहल्ले में दो चार घरों में टीवी होते थे। चित्रहार हो या फिर शनिवार रविवार को आने वाली फिल्में इन्हें देखने के लिए जैसे गांव में चौपाल लगती है वैसा माहौल रहता था। वे कहते हैं कि वो अलग समय था। टीवी शुद्ध मनोरंजन, घरेलू संस्कृति और आपसी व्यवहार का माध्यम बनता था। उस समय के पौराणिक सीरियल रामायण, महाभारत और पारिवारिक सीरीयल हमलोग, बुनियाद के चित्र आज भी आंखों के सामने दिखते हैं। पहले टीवी को सुरक्षित रखने के लिए शटर वाले बाक्स आते थे।
रविवार को पूरे दिन होता था मनोरंजन
अरविंद सोनारे बताते हैं जब वे 14 वर्ष के थे जब उनके घर ब्लेक एंड व्हाईट पोर्टेबल टीवी आया था। उस समय रविवार को पूरे दिन मनोरंजन होता था टीवी पर सुबह से बच्चों के धारावाहिक,कार्टून और मनोरंजक कार्यक्रमों का प्रसारण। नौ बजे से रामायण का प्रसारण। दोपहर को दो घंटों के ब्रेक के बाद शाम चार बजे से स्पइडरमेन, दादा दादी की कहानी, विक्रम वेताल और उसके बाद हिंदी फीचर फिल्म। वो सुनहरी दौर था। अब सीरीयलों में वो बात नहीं रही।
निजीकरण ने बदली तस्वीर
निजीकरण में इस संचार माध्यम की तस्वीर बदली है। दूरदर्शन के कार्यक्रमों सेंसर की कैची चलती थी अब निजी चैनलों पर कोई रोक नहीं है। बदलती पीढ़ी के दर्शकों की पसंद के अनुसार कार्यक्रम तैयार हो रहे हैं। कई बार नैतिकता और संस्कारों, संस्कृति का बिसराने की बात पर विवाद भी होते रहे हैं लेकिन समय के साथ इन्हें स्वीकार करना पड़ रहा है। हालांकि कई चैनल ज्ञान का सागर भी दर्शकों को उपलब्ध करा रहा है। दूरदर्शन आज भी कार्यक्रमों में वो स्तर बनाए रखने की कोशिश में है। आधुनिक तकनीक से बदल गया स्वरूपटीवी अब सूचना और संचार का वृहद माध्यम बन गया है। एंटीना हटने के बाद अब डीटीएच और केबल के जरिए डायरेक्ट टेलीकास्ट देखने को मिल रहा है। पिछले दो दशकों में चैनलों की संख्या सैकडा़ें में पहुंच गई है और अपने मनमुताबिक और पसंद की जानकारी टीवी देने लगा है। अब तो कम्प्यूटर का काम करने लगा है। कुछ हजार में मिलने वाले टेलिविजन सेट अब लाखों की कीमत के मिलने लगे हैं।
टेलिविजन की यात्रा
1959 में दिल्ली में प्रायोगिक तौर पर प्रसारण
1965 से दिल्ली में रोजना प्रसारण हुआ शुरू
1975 मेंसात शहरों में प्रसारण का हुआ विस्तार
1980 में देश के सभी शहरों में प्रसारण शुरू
1982 में पूरे देश में रंगीन प्रसारण शुरू
1993 में दूरदर्शन का दूसरा चैनल शुरू
2004 में डीटीएच से टेलिविजन क्रांति का दौर
रविवार को पूरे दिन होता था मनोरंजन
अरविंद सोनारे बताते हैं जब वे 14 वर्ष के थे जब उनके घर ब्लेक एंड व्हाईट पोर्टेबल टीवी आया था। उस समय रविवार को पूरे दिन मनोरंजन होता था टीवी पर सुबह से बच्चों के धारावाहिक,कार्टून और मनोरंजक कार्यक्रमों का प्रसारण। नौ बजे से रामायण का प्रसारण। दोपहर को दो घंटों के ब्रेक के बाद शाम चार बजे से स्पइडरमेन, दादा दादी की कहानी, विक्रम वेताल और उसके बाद हिंदी फीचर फिल्म। वो सुनहरी दौर था। अब सीरीयलों में वो बात नहीं रही।
निजीकरण ने बदली तस्वीर
निजीकरण में इस संचार माध्यम की तस्वीर बदली है। दूरदर्शन के कार्यक्रमों सेंसर की कैची चलती थी अब निजी चैनलों पर कोई रोक नहीं है। बदलती पीढ़ी के दर्शकों की पसंद के अनुसार कार्यक्रम तैयार हो रहे हैं। कई बार नैतिकता और संस्कारों, संस्कृति का बिसराने की बात पर विवाद भी होते रहे हैं लेकिन समय के साथ इन्हें स्वीकार करना पड़ रहा है। हालांकि कई चैनल ज्ञान का सागर भी दर्शकों को उपलब्ध करा रहा है। दूरदर्शन आज भी कार्यक्रमों में वो स्तर बनाए रखने की कोशिश में है। आधुनिक तकनीक से बदल गया स्वरूपटीवी अब सूचना और संचार का वृहद माध्यम बन गया है। एंटीना हटने के बाद अब डीटीएच और केबल के जरिए डायरेक्ट टेलीकास्ट देखने को मिल रहा है। पिछले दो दशकों में चैनलों की संख्या सैकडा़ें में पहुंच गई है और अपने मनमुताबिक और पसंद की जानकारी टीवी देने लगा है। अब तो कम्प्यूटर का काम करने लगा है। कुछ हजार में मिलने वाले टेलिविजन सेट अब लाखों की कीमत के मिलने लगे हैं।
टेलिविजन की यात्रा
1959 में दिल्ली में प्रायोगिक तौर पर प्रसारण
1965 से दिल्ली में रोजना प्रसारण हुआ शुरू
1975 मेंसात शहरों में प्रसारण का हुआ विस्तार
1980 में देश के सभी शहरों में प्रसारण शुरू
1982 में पूरे देश में रंगीन प्रसारण शुरू
1993 में दूरदर्शन का दूसरा चैनल शुरू
2004 में डीटीएच से टेलिविजन क्रांति का दौर