वीरांगना रानी दुर्गावती का पराक्रम याद किया, आप भी जानें उनकी जीवनी
छिंदवाड़ाPublished: Jun 25, 2019 12:08:27 am
सजग स्वसाधना मंडल ने रानी दुर्गावती वीरांगना दिवस मनाया
celebrated the birthday of Veerangana Rani Durgavati
छिंदवाड़ा. सर्व जागृृति गण परिषद के अंतर्गत अखंड देश भक्ति-जन जागृृति अभियान से जुड़े लोगों ने सोमवार को वीरांगना रानी दुर्गावती का बलिदान दिवस मनाया। सजग स्व-साधना के संयोजक कृपाशंकर ने बताया कि सोमवार को रानी दुर्गावती के बलिदान दिवस के अवसर पर सजग कार्यालय इएलसी हॉस्टल में प्रात: आठ से 10 बजे तक संगोष्ठी आयोजित की गई।
इस अवसर पर यादव ने वीरांगना रानी दुर्गावती की जीवनी पर प्रकाश डाला और बताया कि रानी दुर्गावती का जन्म पांच अक्टूबर 1524 को महोबा में हुआ था। दुर्गावती के पिता महोबा के राजा थे। रानी दुर्गावती सुन्दर, सुशील, विनम्र, योग्य एवं साहसी लडक़ी थी। महारानी दुर्गावती कालिंजर के राजा कीर्तिसिंह चंदेल की एकमात्र संतान थीं। बांदा जिले के कालिंजर किले में 1524 ईसवी की दुर्गाष्टमी पर जन्म के कारण उनका नाम दुर्गावती रखा गया। नाम के अनुरूप ही तेज, साहस, शौर्य और सुन्दरता के कारण इनकी प्रसिद्धि सब ओर फैल गई। दुर्गावती के मायके और ससुराल पक्ष की जाति भिन्न थी, लेकिन फिर भी दुर्गावती की प्रसिद्धि से प्रभावित होकर गोंडवाना साम्राज्य के राजा संग्राम शाह मडावी ने अपने पुत्र दलपत शाह मडावी से विवाह करके अपनी पुत्रवधु बनाया था। दुर्भाग्यवश विवाह के चार वर्ष बाद ही राजा दलपतशाह का निधन हो गया। उस समय दुर्गावती की गोद में तीन वर्षीय नारायण ही था। अत: रानी ने स्वयं ही गढ़मंडला का शासन संभाल लिया। उन्होंने कई मठ, कुएं, बावड़ी तथा धर्मशालाएं बनवाईं। वर्तमान जबलपुर उनके राज्य का केंद्र था। उन्होंने अपनी दासी के नाम पर चेरीताल, अपने नाम पर रानीताल तथा अपने विश्वस्त दीवान आधारसिंह के नाम पर आधारताल बनवाया। रानी दुर्गावती का यह सुखी और सम्पन्न राज्य पर मालवा के मुसलमान शासक बाजबहादुर ने कई बार हमला किया, पर हर बार वह पराजित हुआ। महान मुगल शासक अकबर भी राज्य को जीतकर रानी को अपने हरम में डालना चाहता था। उसने विवाद प्रारम्भ करने हेतु रानी के प्रिय सफेद हाथी (सरमन) और उनके विश्वस्त वजीर आधारसिंह को भेंट के रूप में अपने पास भेजने को कहा था। रानी ने यह मांग ठुकरा दी थी। रानी दुर्गावती ने अपने पहले ही युद्ध में भारत वर्ष में अपना नाम रोशन कर लिया था। कार्यक्रम में इंजी. वासुदेव साधवानी, शोभाराम बैठवार, मोहन पवार, विलास चौरसिया, शिव प्रसाद पवार, शिवषरण राम, एलआर दौडक़े, गुलाब चंद सोनी, डॉ. केएल पाल, वायबी कश्यप, महेंद्र यादव, शिवम यादव, अरुण जैन, शशिबाई, देवकीबाई, लक्ष्मीबाई आदि उपस्थित रही।