80 फीसद स्टाफ आउटसोर्स, वह भी बिना संसाधन के:
बिजली कम्पनी में जितने कर्मचारियों की जरूरत है, उससे आधे कर्मचारियों से ही काम चलाया जा रहा है। इसमें भी 20 फीसदी स्टाफ नियमित है, शेष 80 फीसद को आउटसोर्स पर रखा गया है। लाइनमैनों को काम करने के लिए सेफ्टी बेल्ट, दस्ताने और रस्से की जरूरत पड़ती है, लेकिन उपकेंद्रो में पर्याप्त संसाधन नहीं होने के कारण जान जोखिम में डालकर काम करना पड़ता है। कई बार स्टाफ बिना सेफ्टी बेल्ट के पोल पर चढकऱ काम करते दिखाई दे जाते हैं।
नौ वर्ष पूर्व की व्यवस्था
कनिष्ठ यंत्री जितेंद्र कड़वे ने बताया कि वर्तमान में बिजली कम्पनी के पास जितने कर्मचारी और संसाधन हैं, वे वर्ष 2013 में दर्ज कनेक्शन के आधार पर हैं। इन नौ वर्षों में कनेक्शन की संख्या काफी बढ़ गई, लेकिन कर्मचारी और अन्य संसाधनों में कोई वृद्धि नहीं हो पाई। इसका खमियाजा हमें मानसून के दौरान अपेक्षाकृत ज्यादा उठाना पड़ता है। फाल्ट तलाशने और उसे सुधारने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है। यानी सुधार के लिए आम दिनों की अपेक्षा दो से तीन गुना समय ज्यादा लगता है।
बारिश के दौरान दोगुनी शिकायतें
शहर सम्भाग में औसतन 25 शिकायतें प्रतिदिन बिजली से सम्बंधित मिलती हैं। जिलेभर में यह संख्या 100 से ज्यादा होती है। बारिश के मौसम में यह दोगुनी हो जाती है। तब लाइनमैन के हाथों में ही कमान होती है। बिजली कम्पनी इसके लिए भी आउटसोर्स कर्मचारियों पर ही निर्भर है। इनमें से ज्यादातर तो नौसिखिया हैं, जो प्रशिक्षित और नियमित हैं, वे सभी 50 की उम्र के पार हैं। उनके लिए पोल और पेड़ों पर चढ़ कर मेंटेनेंस कर पाना सम्भव ही नहीं है।
इनका कहना है
बिजली कम्पनी के पास उपकरण पर्याप्त हैं, लेकिन मैनपावर काफी कम है। ज्यादातर सीनियर लाइनमैन रिटायर हो चुके हैं। संविदा और आउटसोर्स के कर्मचारियों की मदद से काम करवाया जा रहा है।
-खुशियाल शिववंशी, कार्यपालन अभियंता, शहर सम्भाग