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Sankat chaturthi: सौभाग्य योग में मनाया जाएगा संकट चतुर्थी पर्व

locationछिंदवाड़ाPublished: Jan 21, 2022 12:41:43 pm

Submitted by:

ashish mishra

इस बार संकट चतुर्थी पर सौभाग्य योग रहेगा।

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छिंदवाड़ा. भगवान श्रीगणेश की आराधना का पर्व तिलकुट संकट चतुर्थी शुक्रवार को मनाई जाएगी। इस बार संकट चतुर्थी पर सौभाग्य योग रहेगा। इस शुभ योग में भगवान गणेश की पूजा करने से बुध, राहु, केतु से संबंधित ग्रह दोषा दूर होंगे। साथ ही संतान की शिक्षा में आने वाली बाधाओं को दूर करने में मदद मिलेगी। विधि पूर्वक पूजा करने से संतान का मन पढ़ाई में लगता है और अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं। क्योंकि गणपति को बुद्धि का दाता माना गया है। बता दें कि मकर संक्रांति के बाद संकट चौथ पर्व का सभी को बेसब्री से इंतजार होता है। इस बार संकट चौथ का पर्व 21 जनवरी को मनाया जाएगा। महिलाएं अपनी संतान की लंबी उम्र और उन्नति के लिए व्रत रखेंगी। माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से भगवान गणेश सभी कष्टों को हर लेते हैं। इसे संकष्टी चतुर्थी, तिलकुट, माघ चतुर्थी के नामों से भी जाना जाता है। हर साल माघ महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकट चौथ का त्योहार मनाया जाता है। ज्योतिषाचार्य पं. दिनेश शास्त्री के अनुसार सनातन धर्म में भगवान गणेश प्रथम पूज्य देव हैं। पौराणिक ग्रंथों में हिंदू धर्म के किसी भी पूजा पाठ में सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है। संकट चौथ गणेश जी को समर्पित है। इस दिन भगवान गणेश की ही पूजा करने का विधान है। ज्योतिषाचार्य के अनुसार इस बार संकट चौथ पर सौभाग्य योग बन रहा है। इस शुभ योग पर किया गया कोई भी कार्य और पूजा सफलता दिलाती है। सौभाग्य योग दोपहर 3.06 तक रहेगा। उसके बाद शोभन योग शुरु होगा। वहीं चतुर्थी तिथि 21 को सुबह 8.51 से प्रारंभ होकर 22 जनवरी को सुबह 9.14 बजे तक रहेगी।
तिल, गुड़ से बनाए गणेश की होती है पूजा
संकट चौथ पर तिल, गुड़ मिलाकर गणेश जी की मूर्ति स्थापित की जाती है। भगवान का षोड्शोपचार पूजन कर शाम को चंद्रमा को अर्घ देकर व्रत को समाप्त किया जाता है। प्रसाद में तिल और गुड़ से बने गणेश जी का सेवन किया जाता है।
यह है महत्व
इस दिन भगवान गणेश अपने जीवन के सबसे बड़े संकट से निकल कर आए थे, इसलिए इसे संकट चौथ कहा जाता है। एक बार माता पार्वती स्नान करने के लिए गई। दरवाजे पर गणेश को खड़ा कर दिया और किसी को अंदर नहीं आने देने के लिए कहा, जब भगवान शिव आए तो गणपति ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया। भगवान शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने त्रिशूल से गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया। पुत्र का यह हाल देखकर माता पार्वती बिलाप करने लगी और अपने पुत्र को जीवित करने के लिए हट करने लगी तब शिवजी ने गणेश को हाथी का सिर लगाकर उनको दूसरा जीवनदान दिया। तभी से वह गजानन कहलाए।
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