एक माह बाद गणेशोत्सव की शुरुआत होगी जिसके लिए कुम्हारों ने प्रतिमाओं को आकार देना अभी से शुरू किया है। जबकि यह काम अप्रैल और मई माह में ही शुरू हो जाता था, लेकिन कोरोना के कारण हुए लॉकडाउन के चलते दमुआ से मिट्टी नहीं ला पाए। मूर्ति के चेहरे पर लगाने के लिए दमुआ से चिकनी मिट्टी खरीदी जाती है, जबकि अन्य मिट्टी आस-पास खेतों से लेकर आते हैं। लॉकडाउन में कुछ छूट मिलने के बाद अब मिट्टी पहुंची है। करीब दो माह देरी से मूर्ति बनाने का काम शुरू हुआ है। बीते साल जो मिट्टी पांच हजार रुपए मिलती थीं इस बार उसके दाम छह हजार रुपए हो चुके। इसी तरह रंग और अन्य सजावट की सामग्री भी महंगी है, लेकिन मूर्तियां महंगी बिकने की कम उम्मीद है, क्योंकि इस बार छोटी मूर्तियां ही बिठाई जाएगी। इसी समय तक पिछले साल ८० से १०० मूर्तियां बनाने के लिए पहले से लोग राशि जमा कर चुके थे, लेकिन इस बार किसी के पास पांच तो किसी के पास दस आर्डर ही आए हैं।
मूर्तिकारों ने बताई व्यथा
कोरोना के कारण इस बार प्रशासन ने पण्डालों में 4 फीट तक की मूर्ति बिठाने के आदेश दिए हैं। पिछले साल इसी समय तक 80 आर्डर आ चुके थे। इस बार केवल 15 आर्डर आए हैं। कोरोना के केश बढ़ गए तो व्यापार प्रभावित हो जाएगा। केश नहीं बढ़े तो व्यापार प्रभावित नहीं होगा। 8 से 10 फीट की मूर्तियां बनवाने के लिए लोग नहीं आ रहे।
-जितेन्द्र मालवी, मूर्तिकार
पिछले सालों में अप्रैल और मई से का शुरू कर देते थे। इस साल जून के अंत में काम चालू किया। पिछले साल इतने समय 15 से 20 आर्डर मिल जाते थे, इस बार एक भी आर्डर नहीं है। मिट्टी 5 हजार में मिलने वाली इस बार 6 हजार में मिल रही। मूर्ति भी कम बनेगी। 20 दिन बनाने का समय मिला है। 10 दिन रंग रोगन में लगता है।
-अजय मालवी, मूर्तिकार