मानसून से पहले लोक निर्माण विभाग सूची तैयार करता हैं। सुरक्षा और निगरानी के लिए कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई जाती है, लेकिन आदेश कागजों तक सीमित रहते हैं। छिंदवाड़ा में तो डायवर्सन मार्ग बहने के बाद भी न विभाग के कर्मचारी नजर आए और न पुलिसकर्मी। प्रतिवर्ष ऐसे हादसों में असमय कई जान जाती है फिर भी जिम्मेदारों की नींद नहीं खुलती। आम लोग भी जागरूकता का परिचय नहीं देते। जर्जर पुल-पुलिया से सबसे ज्यादा परेशानी ग्रामीण इलाकों में होती है। अतिवृष्टि से यातायात बंद हो जाता है। गांव टापू में तब्दील हो जाते हैं। बीमार पडऩे पर समय से अस्पताल पहुंचने में समस्या आती है। कई बार उफनते नदी-नाले पार करने पड़ते हैं। फिर भी मानसून से पहले पुल-पुलियाओं के निर्माण की कार्ययोजना नहीं बनाई जाती। हादसे होने के बाद अफसरों की नींद टूटती है।
यदि समय रहते ध्यान दिया जाए तो आमजन को परेशानी से बचाया जा सकता है। हादसों को रोका जा सकता है। आमजन को भी जोखिम भरे स्थानों से आवागमन करने से बचना चाहिए। जल्दबाजी में जान भी जा सकती है। पुलिस और प्रशासन को निगरानी पर फोकस करना चाहिए। जर्जर पुल और पुलियाओं के दोनों किनारों पर सूचना बोर्ड लगा देना चाहिए। अतिवृष्टि की स्थिति बनने पर यातायात पूरी तरह बंद कर देना चाहिए।