सुदामा प्रसंग के साथ कथा का समापन भागवत कथा को सुन कर गुन लिया जाए तो मनुष्य का जीवन ही बदल जाएगा। सुनने मात्र से प्राणी के आधे पाप नष्ट हो जाते हैं बुरे विचार, विकृतियां, अहंकार आदि का नाश होता है। खुनाझिरकलां में एक सप्ताह से चली रही श्रीमद् भागवत कथा के समापन पर यह बात पं भुवनेश कृष्ण शास्त्री ने कही।
ज्ञान यज्ञ सप्ताह के आखिरी दिन सोमवार को उन्होंने राजा परीक्षित के मोक्ष प्राप्त होने, भगवान के स्वधाम गमन की कथा सुनाई। इससे पहले उन्होंने सुदामा प्रसंग सुनाया। भागवत का सबसे भावुक प्रसंग यही है। शास्त्री जी ने कहा कि जहां मित्रता होती है वहां छोटे-बड़े, अमीर-गरीब का भेद नहीं रहता। कृष्ण तो राजा बन गए थे, लेकिन वे अपने मित्र को कभी नहीं भूले। सुदामा भी बड़े ज्ञानी थे। उन्हें मालूम था कि जो उनके प्रारब्ध में लिखा है वह उन्हें भोगना है। जैसे ही उनके बुरे दिन खत्म हुए वे भगवान के द्वार पहुंचे और भगवान ने उनकी पूरी दरिद्रता दूर की। सात दिन चली भागवत कथा में समापन के बाद मंगलवार को हवन-पूजन और महाप्रसाद का कार्यक्रम रखा गया है।
ज्ञान यज्ञ सप्ताह के आखिरी दिन सोमवार को उन्होंने राजा परीक्षित के मोक्ष प्राप्त होने, भगवान के स्वधाम गमन की कथा सुनाई। इससे पहले उन्होंने सुदामा प्रसंग सुनाया। भागवत का सबसे भावुक प्रसंग यही है। शास्त्री जी ने कहा कि जहां मित्रता होती है वहां छोटे-बड़े, अमीर-गरीब का भेद नहीं रहता। कृष्ण तो राजा बन गए थे, लेकिन वे अपने मित्र को कभी नहीं भूले। सुदामा भी बड़े ज्ञानी थे। उन्हें मालूम था कि जो उनके प्रारब्ध में लिखा है वह उन्हें भोगना है। जैसे ही उनके बुरे दिन खत्म हुए वे भगवान के द्वार पहुंचे और भगवान ने उनकी पूरी दरिद्रता दूर की। सात दिन चली भागवत कथा में समापन के बाद मंगलवार को हवन-पूजन और महाप्रसाद का कार्यक्रम रखा गया है।