जो सर्वांग सुंदर हो उसे सजने की आवश्यकता नहीं अपने भावों को सुंदर और निर्मल बनाना बहुत जरूरी है और यही सबसे बड़ा पुरुषार्थ है। जो सर्वांग सुंदर है उसे सजने की आवश्यकता नहीं होती। यह बात मुनि अतुलसागर महाराज ने शहर के गोलगंज स्थित आदिनाथ दिगम्बर जिनालय में कही। रत्नकरंड श्रावकाचार ग्रंथ की वाचना यहा ंचल रही है। मुनि महाराज ने कहा कि श्रद्धा परमार्थ भूत होनी चाहिए। यानी सच्चे देव गुरु शास्त्र पर होना चाहिए। लौकिक कामनाओं के लिए नहीं होनी चाहिए। श्रद्धा एकदम पक्की होनी चाहिए। उसमें खोट नहीं होनी चाहिए। हम सब सच्ची श्रद्धा और सम्यक दर्शन को प्राप्त करें ऐसी कामना की जानी चाहिए।