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अतिक्रमण से सिकुड़ गए किनारे,नाला बन गई ये नदी

locationछिंदवाड़ाPublished: Apr 24, 2019 11:41:28 am

Submitted by:

manohar soni

खतरे की घंटी: सिकुड़ गए नदी के किनारे,पानी में डाली मिट्टी और तान दिए मकान
 

chhindwara

अतिक्रमण से सिकुड़ गए किनारे,नाला बन गई ये नदी

छिंदवाड़ा.एक समय था जब शहर के अंदर बहनेवाली सदा नीरा बोदरी नदी कुलबेहरा और पेंच की सहायता से दक्षिण की गंगा गोदावरी नदी की सहायक थी और अपने जल से पशु-पक्षियों की प्यास बुझाते हुए मानवीय निस्तार का साधन हुआ करती थी। वक्त के बदलाव के साथ नदी किनारे कांक्रीट के जंगल तैयार होते गए। धीरे-धीरे व्यक्तिगत स्वार्थ से स्थिति यह बनी कि अब नदी की धारा के बीच अतिक्रमण कर मकान बना लिए गए। हमेशा की तरह सरकारी मशीनरी और जिम्मेदार संस्थाएं सोती रही। इसका नतीजा यह है कि जल संसाधन की यह महत्वपूर्ण कड़ी अब लुप्त होने की कगार पर आ गई है।
लोकसभा चुनाव के मुद्दों को जानने के लिए पत्रिका की ओर से जनएजेण्डा में जागरूक नागरिकों से चर्चा की गई तो बोदरी नदी पर छाए संकट को प्रमुखता से रखा गया। इसके बाद इस मुद्दे की पड़ताल में यह सामने आया कि करीब 12 से 15 किलोमीटर बहने वाली बोदरी का उद्गम छिंदवाड़ा शहर के खजरी और सोमाढाना की दो धाराओं से होता है। शहर में इसका घुमाव करीब 7 किलोमीटर है। ये कुलबेहरा की सहायक नदी है। सोनपुर में बोदरी और कुलबेहरा का संगम है। आगे चलकर कुलबेहरा पेंच नदी में मिल जाती है। पेंच नदी बैनगंगा और कन्हान के जरिए दक्षिण की गंगा के नाम से विख्यात गोदावरी नदी में मिलती है जो आगे चलकर बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है।
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नब्बे के दशक का शहरीकरण से नदी बनी नाला
पर्यावरणविद् रविन्द्र सिंह बताते हैं कि 1980 तक बोदरी में साफ पानी बहता था। ये नदी सभी मानकों पर खऱी उतरती थी। नब्बे के दशक में कांक्रीट के जंगल तेजी से तैयार हुए तो सबसे ज्यादा गाज बोदरी भी गिरी। नई कॉलोनियां के मकानों से निकलने वाली गंदी नालियां बोदरी में सीधे बहाई जाने लगी। धरमटेकरी, सुभाष कॉलोनी, विवेकानंद कॉलोनी, कलेक्ट्रेट, गुरैया सब्जी मंडी देखा जाए तो शहर का ऐसा कोई कोना नहीं जहां की गंदगी बोदरी में नहीं आती हो। केवल दो दशक में बोदरी साफ सुथरी नदी से पूरी तरह गंदा नाला बन गई। अब नागपुर रोड के पास तो बोदरी नदी के धारा के बीच अतिक्रमण कर पक्के मकान देखे जा सकते हैं। भविष्य में तो यह होगा कि नदी में मिट्टी डाली जाती रहेगी और नदी ही लुप्त होती जाएगी।

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