बारिश के कम होते दिन चिंताजनक
पर्यावरण असंतुलन के कारण सतपुड़ा के पठार में स्थित यह जिला भी प्रभावित होता दिख रहा है। पिछले दो मानसून में सामान्य बारिश तक नहीं हुई है। जिले में तीन माइक्रो क्लाइमेट में क्षेत्र बंटे हैं। 1059 मिमी बारिश तो यहां की आंकी गई है, लेकिन… 960 मिमी
बारिश भी औसत कहलाती है। 2017 और 2018 में आंकड़ा 800 मिमी पार भी नहीं हुआ। हालात ये हुए कि 2018 में जिले को जल अभावग्रस्त घोषित करना पड़ा। दरअसल, वर्षा के मौसम में बारिश के कम होते दिन चिंता में डाल रहे हैं।
ये हैं जिले के हालात
1. जिले में पहाड़ी पठार में तामिया, जामई, हर्रई और अमरवाड़ा आते हैं। यहां औसत 1200 मिमी बारिश होनी चाहिए।
हकीकत: पिछले दो वर्षों में 1000 मिमी से ज्यादा आंकड़ा नहीं बढ़ा
2. समतल क्षेत्र में सौंसर,
पांढुर्ना और बिछुआ आते हैं। इन क्षेत्रों में औसत 700 मिमी बारिश होनी चाहिए।
हकीकत: यहां दो मानसून सत्र सत्र में 600 मिमी से कम पानी बरसा है।
3. पठारी क्षेत्र में छिंदवाडा, मोहखेड़ और चौरई हैं। 1000 मिमी औसत बारिश वाले इन क्षेत्रों में सबसे बुरे हालात है।
हकीकत: इन क्षेत्रों में तोऔसत बारिश 800 मिमी से भी कम है।
बिगड़ गया संतुलन
आंचलिक कृषि अनुसंधान केंद्र के मौसम सूचना केंद्र के नोडल अधिकारी डॉ वीके पराडकर का कहना है जून से लेकर सितम्बर तक के महीने में बारिश कितनी होनी चाहिए इसका एक औसत बना हुआ है। जून में 16 प्रतिशत, जुलाई में 27 प्रतिशत, अगस्त में 32 प्रतिशत और सितंबर में 6 प्रतिशत बारिश होनी चाहिए। यह प्रतिशत महीने भर में समय-समय पर निर्धारित अंश के रूप में होना जरूरी है। जबकि जुलाई और अगस्त में संतुलन बिगड़ रहा है। जुलाई में 27 प्रतिशत तक होने वाली बारिश 32 प्रतिशत तक हो रही है तो अगस्त में 32 प्रतिशत तक होने वाली वर्षा का आंकड़ा कम होकर 26-27 प्रतिशत तक आ गया है। सितम्बर और अक्टूबर में भी असामयिक वर्षा होती देखी जा रही है। ज्यादा दिक्कत इसलिए है कि महीने में वर्षा के 10 या 15 दिनों में जो वर्षा होनी चाहिए वह दो-तीन दिन या फिर एक सप्ताह में हो जा रही है। इससे पूरा गणित गड़बड़ा रहा है। बारिश के दिनों में लम्बी खेंच ज्यादा नुकसानदायक है। पिछले तीन साल में बरसाती दिनों में 20-20 दिन का सूखा और कापरेट एरिया को छोडकऱ खंड-खंड होती बारिश यह दर्शा रही है कि प्रदूषित हो रहे पर्यावरण का नुकसान किस स्तर तक होना शुरू हो गया है।