उठते हैं ये सवाल
ऐसे में सवाल यह उठता है कि पहले से ही पैक किए गए और घंटों देरी के बावजूद यात्रियों को बेचे जाने वाले खाद्य पदार्थों की निगरानी कभी हो भी रही है या नहीं। आखिर इन स्टॉलों को किस आधार पर खराब खाद्य पदार्थ बेचने की अनुमति दी जा रही है। जानकारी के अनुसार यहां स्टॉलों के शुरू होने के बाद किसी भी मंडल रेल अधिकारी द्वारा कभी कोई जांच करना जरूरी नहीं समझा गया। इसे ठेकेदार कम्पनी पर मंडल रेल अधिकारियों का विश्वास कहें या फिर आत्मविश्वास नागपुर स्टेशन पर नामी ठेकेदारों द्वारा बेचे जा रहे ऐसे खराब भोजन से साफ है कि उन्हें सरकार के कान खींचने वाली देश की सर्वोच्च स्वायत्त निगरानी संस्था कैग का भी डर नहीं है। जैसा चलता है, वैसा चलता रहेगा। ऐसे में यदि ऐसा दूषित भोजन करने से किसी यात्री को फूड पॉयजनिंग हो गई और उसकी जान पर बन आई तो जिम्मेदार कौन होगा।