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इस शहर से बिन बरसे लौट रहे बादल..जानिए क्या है वजह

locationछिंदवाड़ाPublished: Jul 20, 2019 11:03:56 am

Submitted by:

manohar soni

नेशनल हाइवे निर्माण में 2.15 लाख पेड़ों की बलि से बिगड़ा वर्षा चक्र

chhindwara

इस शहर से बिन बरसे लौट रहे बादल..जानिए क्या है वजह

छिंदवाड़ा.शहर में निजी और सरकारी स्तर पर तैयार हो रहे कांक्रीट के जंगल में जिस तरह पर्यावरण संरक्षण को दरकिनार किया गया है,उसकी कीमत इस समय अनियमित बारिश के रूप में चुकानी पड़ रही है। नेशनल हाइवे के निर्माण में 2.15 लाख पेड़ काटे गए। फिर दूसरे बड़े प्रोजेक्ट में पेड़ों की उपयोगिता को नजरअंदाज किया गया। इससे शहर समेत आसपास की हरियाली पहले की तुलना में 40 फीसदी तक घटी है। इसका नतीजा है कि वातावरण में नमी न मिलने से आसमान में छाए बादल खुलकर बरस नहीं पा रहे हैं और बैरंग ही लौट रहे हैं। पर्यावरणविदें का कहना है कि शहर में बारिश का पुराना दौर लौटाने के लिए हर व्यक्ति को एक पौधा लगाना होगा और दस साल तक उसकी देखरेख कर पेड़ तैयार करने होंगे,तभी सावन के गीत गाए जा सकेंगे।
शहर की मुख्य सडक़ों में वर्ष 2011 तक पेड़ों की अधिकता होने से मौसम खुशगवार था। हरियाली होने से तापमान भी 40 डिग्री तक केन्द्रित था। इससे छिंदवाड़ा अधिक वर्षा वाले जिलों में गिना जाता था। विकास की आंधी में शहर में वर्ष 2011-12 से लेकर 2014 तक नेशनल हाइवे निर्माण में पेड़ कत्ल कर दिए गए। इसकी तुलना में दस प्रतिशत भी पौधे नहीं लगाए गए। इसके अलावा दूसरे बड़े प्रोजेक्ट में भी पेड़ों को निशाना बनाया गया। योजनाकारों ने पर्यावरण के घटक पेड़ों का ध्यान नहीं रखा। इसका दुष्परिणाम यह है कि पिछले दो साल से अनियमित बारिश हो रही है। इस साल तो गर्मी के रिकार्ड 46 डिग्री पर टूट गए। ग्लोबल वार्मिंग से जून में मानसून का सिस्टम नहीं बना। जुलाई में पहले तीन दिन बारिश हुई। फिर दस दिन तक आसमान में बादल छाए रहे। कहीं भी बारिश देखने को नहीं मिली। बंगाल की खाड़ी में बनने वाले कम दवाब के क्षेत्र ने प्रदेश से गुजरते हुए बड़े हिस्से में अच्छी बारिश की, लेकिन शहर में अधिकांश दिन बूंदा-बांदी ही हुई। शुक्रवार को बादल फिर वापस आए लेकिन शहर के किसी कोने में बरस गए तो कहीं एक बूंद पानी नहीं आया। इससे शहर के ग्रीन कवर में गिरावट को महसूस किया जा सकता है।
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पहले करीब था जंगल,अब दस किमी में नहींं
छिंदवाड़ा शहर में ही पहले जंगल जगह-जगह मौजूद था। विकास की आंधी के चलते अब नागपुर रोड में इमलीखेड़ा,सिवनी रोड में घाट परासिया,परासिया रोड में पोआमा और बैतूल रोड में खुनाझिर तक दूर-दूर तक पेड़ नजर नहीं आते हैं। अभी भी शहर में मेडिकल कॉलेज,मिनी स्मार्टसिटी,लहगड़ुआ में गारमेंट पार्क के प्रोजेक्ट निर्माणाधीन और प्रस्तावित है तो वहीं कन्हान कॉम्पलेक्स जैसे निर्माण भी होंगे। निर्माण के दौरान ग्रीन कवर को ध्यान नहीं रखा गया तो पर्यावरण के हालात और गंभीर हो जाएंगे।
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एक्सपर्ट व्यू
इसलिए शहर छोडकऱ जंगल में बरस जाते हैं बादल
जंगल के पेड़-पौधे और बादलों का आपस में प्राकृतिक संबंध है। वनों की सघनता से वातावरण में चौतरफा नमी बनी रहती है। जैसे ही आसमान में बादल घने होते हैं। पेड़ों की पत्तियों की नमी उन्हें अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं और बारिश करा देते हैं। इसी कारण जंगल और पहाड़ों में वर्षा ज्यादा होती है। इस लिहाज से शहर समेत आसपास के इलाको देखा जाए तो शहर में इस समय क्रांकीट का ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है। इसकी तुलना में हरियाली नहीं बढ़ पा रही है। क्रांकीट के उपयोग से तापमान में लगातार वृद्धि नजर आ रही है। इस तापमान के चलते आसमान में बादल छाए होने पर स्थानीय वातावरण बारिश में सहयोग नहीं कर पाता। बादल धीरे-धीरे आगे चले जाते हैं। आप तामिया के जंगलों में ज्यादा बारिश और शहर में कम वर्षा से इसका अंदाज लगा सकते हैं। एक बात और यह है कि ग्लोबल वार्मिंग से मानसून चक्र कहीं न कहीं असंतुलित हुआ है। हम सभी को मिलकर शहर के कोने-कोने में पेड़-पौधे लगाने के प्रयास करना चाहिए। तभी शहर की बारिश का पुराना दौर लौटाया जा सकता है। बादल और पेड़ों का संबंध साइंस में प्रमाणित है।
-आलोक पाठक,डीएफओ दक्षिण वनमण्डल छिंदवाड़ा।

इनका कहना है..
आसमान में बादल बनने के बावजूद स्थानीय वातावरण के सहयोग न करने से बारिश नहीं हो पाती है। दोनों के आपसी मेल से ही वर्षा का चक्र निर्भर है। इस वजह से छिंदवाड़ा में मानसूनी वर्षा प्रभावित हो रही है।
-डॉ.विजय पराडकर,नोडल अधिकारी मौसम सूचना केन्द्र
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शहर के हर व्यक्ति को जल,जंगल और पर्यावरण के महत्व को समझना होगा। कम बारिश को देखते हुए अधिकतम पौधे लगाने चाहिए। तभी तापमान को कम कर हम बादलों को आकर्षित कर पाएंगे।
-सुनील श्रीवास्तव,क्षेत्रीय अधिकारी,प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड।
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एक नजर इधर भी..
जिले में 29 फीसदी जंगल
कृषि भूमि-702890.04 हैक्टेयर प्रतिशत 59.53
वन क्षेत्र-351005.59 हैक्टेयर प्रतिशत 29.73
निर्माण क्षेत्र-12508.86 हैक्टेयर प्रतिशत 1.05
नदी एवं जलाशय-30670.87 हैक्टेयर प्रतिशत 2.59
झाड़ी क्षेत्र-76348.46 हैक्टेयर प्रतिशत 6.46
पड़त भूमि-7187.03 हैक्टेयर प्रतिशत 0.60
कुल-1180610.88 हैक्टेयर प्रतिशत 100
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पिछले चार साल में घटता बारिश का औसत
2016-1034 मिमी
2017-935.4 मिमी
2018-807 मिमी
2019-146 मिमी अब तक

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