जिला मलेरिया अधिकारी देवेंद्र भालेकर ने बताया कि वैज्ञानिकों द्वारा किए गए परीक्षण में फाइलेरिया फैलाने वाली कृमि नहीं पाई गई। इससे उम्मीद है कि जिले में फाइलेरिया रोग का संक्रमण नहीं हो रहा है। डीएमओ भालेकर ने बताया कि वर्तमान में जिले में करीब १५० हाथीपांव के मरीज पंजीकृत हैं। सभी मामले काफी पुराने हैं। वर्तमान में जिले में कोई भी नया रोगी सामने नहीं आया है।
जांच करने पहुंची राज्यस्तरीय टीम में कीट वैज्ञानिक डॉ. सत्येंद्र पांडे, कीट संग्राहक छतरपुर से डॉ. तिवारी, क्षेत्रीय स्वास्थ्य संस्थान भोपाल से कीट वैज्ञानिक पवन तिवारी तथा फाइलेरिया कंसल्टेंट पवन मेहरा शामिल थे।
राज्यस्तरीय टीम ने सौंसर और पांढुर्ना के प्रत्येक गांव के दस घरों में १५-१५ मिनट बिताकर सुबह छह से ८.३० बजे के बीच क्यूलैक्स मच्छरों को पकड़ा। बताया जाता है कि सुबह-सुबह मच्छरों की समस्या अधिक होता है। उनका पेट भरा होता है, इसीलिए वह शांत एक स्थान पर बैठे रहते हैं। उन्हें पकडऩे का यह समय सर्वाधिक अनुकूल माना
जाता है।
तीसरे चरण की जांच के लिए फिर आएगी टीम
जिला मलेरिया विभाग से मिली जानकारी के अनुसार २७ से २९ सितम्बर के बीच तथा तीसरे चरण की जांच के लिए अक्टूबर माह में टीम आ सकती है। इसके बाद रिपोर्ट दिल्ली भेजी जाएगी। दिसम्बर में स्कूली बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण किया जाएगा। इसमें माइक्रो फाइलेरिया की दर एक प्रतिशत से कम आने पर जिले को फाइलेरिया मुक्त घोषित किया जा सकता है।
जांच करने पहुंची राज्यस्तरीय टीम में कीट वैज्ञानिक डॉ. सत्येंद्र पांडे, कीट संग्राहक छतरपुर से डॉ. तिवारी, क्षेत्रीय स्वास्थ्य संस्थान भोपाल से कीट वैज्ञानिक पवन तिवारी तथा फाइलेरिया कंसल्टेंट पवन मेहरा शामिल थे।
राज्यस्तरीय टीम ने सौंसर और पांढुर्ना के प्रत्येक गांव के दस घरों में १५-१५ मिनट बिताकर सुबह छह से ८.३० बजे के बीच क्यूलैक्स मच्छरों को पकड़ा। बताया जाता है कि सुबह-सुबह मच्छरों की समस्या अधिक होता है। उनका पेट भरा होता है, इसीलिए वह शांत एक स्थान पर बैठे रहते हैं। उन्हें पकडऩे का यह समय सर्वाधिक अनुकूल माना
जाता है।
तीसरे चरण की जांच के लिए फिर आएगी टीम
जिला मलेरिया विभाग से मिली जानकारी के अनुसार २७ से २९ सितम्बर के बीच तथा तीसरे चरण की जांच के लिए अक्टूबर माह में टीम आ सकती है। इसके बाद रिपोर्ट दिल्ली भेजी जाएगी। दिसम्बर में स्कूली बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण किया जाएगा। इसमें माइक्रो फाइलेरिया की दर एक प्रतिशत से कम आने पर जिले को फाइलेरिया मुक्त घोषित किया जा सकता है।