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लाखों रुपए की वनसंपदा के मालिक, फिर भी आखिर क्यों गरीब हैं वनवासी..जानिए वजह

locationछिंदवाड़ाPublished: Oct 08, 2021 11:27:32 am

Submitted by:

manohar soni

वन विभाग की 24 अपनी दुकानें और स्व-सहायता समूह होने के बाद भी एक फीसदी भी नहीं बढ़ी सरकारी खरीदी

लाखों रुपए की वनसंपदा के मालिक, फिर भी आखिर क्यों गरीब हैं वनवासी..जानिए वजह

लाखों रुपए की वनसंपदा के मालिक, फिर भी आखिर क्यों गरीब हैं वनवासी..जानिए वजह

छिंदवाड़ा.अचार गुठली, आंवला, हर्रा,बहेड़ा समेत अधिकांश लघु वनोपज के व्यापार में बिचौलियों के वर्चस्व को सरकारी एजेंसियां तोड़ नहीं पाई है। इनका मार्केट शेयर साल भर की खरीदी पर एक फीसदी भी नहीं हो पाया है। इसका दुष्परिणाम है कि वनवासी बेशकीमती वनसंपदा के मालिक होने के बावजूद भी कभी लखपति नहीं बन पाए। केवल रोजमर्रा की जरूरतों पर ही उनका जीवन सिमट गया है।
जिले के 11,815 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में 3.51 लाख हैक्टेयर यानि 29.73 प्रतिशत हिस्से में जंगल है और 53 वानिकी प्रजातियां है। राज्य शासन ने 32 लघु वनोपजों की खरीदी का सरकारी समर्थन मूल्य घोषित किया है। इसके लिए पूर्व, पश्चिम और दक्षिण वनमण्डल की 23 रेंज में 24 अपनी दुकानों का निर्माण भी किया गया है। इसके लिए राज्य शासन से समर्थन मूल्य पर वनोपज खरीदी के निर्देश हैं लेकिन वन विभाग के रिकार्ड बताते हैं कि अचार गुठली एक क्विंटल भी विभागीय कर्मचारी नहीं खरीद पाए। इसके साथ ही हर्रा, आंवला, कालमेघ भी अत्यंत कम मात्रा में खरीदी। महुआ का बड़ा उत्पादन होने पर एक किलो भी महुआ कहीं दर्ज नहीं हो पाया। स्थानीय अधिकारी-कर्मचारी बाजार मूल्य ज्यादा होने की रिपोर्ट कर अपनी जिम्मेदारी से बरी हो जाते हैं लेकिन बिचौलियों से मुक्त कराने के उनके प्रयास मैदान में दिखाई नहीं देते। इसके चलते लघु वनोपज का 99 प्रतिशत व्यापार बिचौलियों के हाथों में हैं। यदि बिचौलिए सहीं दाम देते तो हर वनवासी परिवार लखपति बनता। मैदानी स्तर पर कभी भी उनका जीवन स्तर सुधर नहीं पाया। उनकी तुलना में बिचौलिए लाखों-करोड़ों रुपए के मालिक बनते जा रहे हैं। इस आर्थिक असमानता की खाई को दूर करने की कोई प्लानिंग दूर-दूर तक दिखाई नहीं देती है।

ग्रामीण आजीविका मिशन केवल एक खोल पाया सेंटर
ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत अचार चिरोंजी का प्रतिस्पर्धात्मक मूल्य दिलवाने के लिए व्यापक कार्ययोजना बनाई गई थी लेकिन तामिया पातालकोट के ग्राम डोंगरा में अचार गुठली की एक प्रोसेसिंग यूनिट लग पाई। जिसमें 7 क्विंटल अचार गुठली को प्रोसेस कर चिरोंजी बनाया गया। अमरवाड़ा, हर्रई, देलाखारी, बम्हनी में भी ये प्रस्ताव थे लेकिन आगे नहीं बढ़ पाए। जबकि ये केन्द्र खुलते तो क्षेत्रीय आदिवासियों को न केवल बिचौलियों से बचाया जाता बल्कि बेहतर बाजार मूल्य दिलाया जा सकता था।

अमरवाड़ा एशिया की मंडी,फिर भी दूर नहीं हुए दुर्दिन
अचार गुठली में अमरवाड़ा को एशिया की मण्डी माना जाता है, जहां आदिवासी अचार गुठली जंगलों से बीनकर लाते हैं। उसकी प्रोसेसिंग कर चिरोंजी निकाली जाती है। इसके दाम 1500 से 2000 रुपए किलो हो जाते हैं। इसका फायदा व्यापारिक जगत को मिलता है। इस पूरे व्यापार में वनवासियों कोई लाभ नहीं मिलता। यहीं स्थिति हर्रई, बटकाखापा, बम्हनी, देलाखारी और तामिया की है, जहां वनवासी परम्परागत रूप से कम दामों पर वनोपज बेच रहे हैं।

इनका कहना है..
राज्य शासन द्वारा घोषित 32 लघु वनोपज की समर्थन मूल्य पर खरीदी के स्थानीय अधिकारी-कर्मचारियों को निर्देश है तो वहीं चार बंधन केन्द्र बनाए गए हैं। जिनसे स्व-सहायता समूहों को जोड़ा गया है। इससे उन्हें लघु वनोपज के दाम दिलवाए जा रहे हैं।
-केके भारद्वाज,सीसीएफ छिंदवाड़ा।

वन विभाग में लघु वनोपज खरीदी का रिकार्ड
वनधन विकास केन्द्र चिलक पूर्व वनमण्डल
वनोपज मात्रा खरीदी राशि
अचार गुठली 78 किग्रा 17208 रुपए
हर्रा 2700 किग्रा 383400 रुपए

वन धन विकास केन्द्र बम्हनी पश्चिम वनमण्डल
हरा आंवला 108.35 क्विंटल 216700 रुपए
सूखा आंवला 11.50 क्विंटल 126500 रुपए
कालमेघ 70 किलो 2100 रुपए

वनधन विकास केन्द्र मैनीवाड़ी पश्चिम वनमण्डल
बाल हर्रा 5.30 क्विंटल 70042 रुपए
छाल 10.50 क्विंटल 36184 रुपए
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