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यहां के आदिवासी आज भी राष्ट्रभाषा से कोसों दूर

locationछिंदवाड़ाPublished: Apr 20, 2019 12:04:36 pm

Submitted by:

Rajendra Sharma

बिछुआ विकासखंड का मामला: दुभाषियों की पड़ती है जरूरत

The tribals here are far from the national language

The tribals here are far from the national language

छिंदवाड़ा/बिछुआ. विकासखंड बिछुआ के दर्जनभर गांव आज भी राष्ट्रभाषा हिंदी से कोसों दूर हैं। यहां बड़ी संख्या में मवासी आदिवासी रहते हैं, जिन्हें मवासी के अलावा अन्य भाषा समक्ष में नहीं आती है। अगर कोई नेता प्रचार करने के लिए पहुंचता है तो संवाद के लिए दुभाषियों की जरूरत पड़ती है।
विकासखंड मुख्यालय से छह किमी दूरी से ये मवासी क्षेत्र शुरू हो जाते हैं। ग्राम गुलसी, खदबेली, डगरिया, बिसाला, राघादेवी, तिवड़ी, पनियारी, चकारा, मोहपानी, टेकापार, मझियापार, मुग्नापार, चिचगांव, बड़ोसा जनजाति आधारित पंचायतें हैं। यहां करीब छह-सात हजार आबादी मवासी भाषी है। मुख्यत: खेती-किसानी से जुड़े ये लोग समय के साथ आधुनिक संसाधन का उपयोग करने लगें हैं, लेकिन भाषा और संस्कृति में उनके ख्याल परम्परागत हंै। वे अपनी मवासी भाषा में ही बातचीत करना पसंद करते हंै। कोई हिंदी भाषी मिल जाए और उनसे कुछ कहते हैं तो वे उसे समझ नहीं पाते हैं। जब तक दोनों भाषाओं का जानकार मध्यस्थता न करे।
इन गांवों में सबसे ज्यादा परेशानी तब आती है। जब कोई नेता या प्रत्याशी पहुंच जाए और अपनी भाषा में भाषण देना चाहे तो नहीं दे सकता। उसे स्थानीय कार्यकर्ता की मदद लेनी ही पड़ती है। अपनी बात समझाने के लिए फिर घंटेभर की मशक्कत करनी पड़ती है।

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