दृश्य दो
छिंदवाड़ा और सिवनी जिले की सीमा पर बसे दो गांव सिमरिया और चक्की खमरिया के बीच तीन खेत नरवाई की आग में सुलग रहे थे। दूर से दृश्य ऐसा नजर आ रहा था मानों भीषण आग लगी हो। ग्रामीणों से पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि इस सीजन में यह दृश्य आम है। हर दूसरे तीसरे दिन कोई न कोई किसान अपने खेतों की नरवाई जला देता है।
ये दृश्य तो महज एक बानगी हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में जहां तक नजर दौड़ाएं दिन में धुआं और काली चादर नजर आती है तो वहीं रात में सुलगते हुए खेत। प्रशासन की कोशिशें और कृषि विभाग की समझाइश के बावजूद नरवाई जलाने की घटनाओं में कोई कमी नहीं आई है। वजह नरवाई जलाने पर न तो कार्रवाई का डर है न ही इससे होने पर नुकसान की जानकारी। वहीं दूसरी वजह है नरवाई को नष्ट करने के अन्य तरीकों की लागत।
बीते दिनों सेटेलाइट से दर्ज नरवाई जलाने की घटनाओं के आंकड़ों की मानें तो सिवनी जिले में एक ही दिन में ऐसी 176 घटनाएं दर्ज की गईं। उस दिन सिवनी प्रदेश में दूसरे स्थान पर रहा जबकि छिंदवाड़ा प्रदेश में 13वें स्थान पर रहा। यहां 39 घटनाएं दर्ज की गईं।
ऐसे रखी जाती है नजर
राजधानी भोपाल में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की क्रीम्स शाखा है। यहां सेटेलाइट से सर्वे कराया जा रहा है। इससे पता चल रहा है कि किस जिले में, किस क्षेत्र में किसान नरवाई जला रहे हैं। नरवाई जलने की सूचना कृषि विभाग को भेजी जाती है।
ढाई हजार जुर्माना
नरवाई जलाने पर कार्रवाई का प्रावधान है। दो एकड़ तक खेत में नरवाई जलाने पर 2500 रुपए, दो से पांच एकड़ खेत में नरवाई जलाने पर पांच हजार रुपए और पांच एकड़ से अधिक खेत में नरवाई जलाने पर 15 हजार रुपए का जुर्माना देना होता है।
किसका क्या पक्ष
प्रशासन
प्रशासन के मुताबिक धारा 144 के अंतर्गत जिले की भौगोलिक सीमा में खेत में खड़े फसल के अवशेष डंठलों (नरवाई) में आग लगाई जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। फसल कटाई के बाद अगली फसल के खेत तैयार करने के लिए किसानों द्वारा अपनी सुविधा के लिए खेत में आग लगाकर फसल काटने के उपरांत भूमि जड़ डूंठ (नरवाई) को नष्ट कर खेत साफ किया जाता है। इससे व्यापक अग्नि दुर्घटनाएं होकर जन धन की हानि होती है। इसे नरवाई में आग लगाने की प्रथा के नाम से भी जाना जाता है।
वैज्ञानिक
खेत की मिट्टी में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले लाभकारी सूक्ष्म जीवाणु नष्ट होते हैं। इससे खेत की उर्वरा शक्ति शनै: शनै: घट रही है और उत्पादन प्रभावित हो रहा है। वास्तव में खेत में पड़ा कचरा, भूसा, डंठल, कड़वी सडऩे के बाद भूमि को प्राकृतिक रूप से उपजाऊ बनाते हैं और इन्हें जलाकर नष्ट करना ऊर्जा को नष्ट करना है। जिले में कई किसानों द्वारा रोटावेटर व अन्य साधनों से कटाई के उपरांत फसल के शेष अवशेषों को खेत से हटाने के साधन अपनाए जाने लगे हैं।
किसान
गेहूं या धान की फसल कटने के बाद जो अवशेष बचे रहते हैं उसे नरवाई कहते हैं। इसे निकालने के लिए खेत में स्ट्रा रीपर या रोटावेटर का उपयोग करना पड़ता है। कटाई की लागत ज्यादा होने की वजह से किसान नरवाई जलाने का रास्ता चुनते हैं।
किसानों को नरवाई जलाने की बजाय अवशेष में छिपे 40 फीसदी खाद के उपयोग को समझना होगा। इसके साथ ही सरकार किसानों को सब्सिडी पर अवशेष काटने वाले मल्चर, भूसा मशीन और काम्बो हार्वेस्टर उपलब्ध कराए तो इस समस्या को समाप्त किया जा सकता है।
-मेरसिंह चौधरी, जिलाध्यक्ष भारतीय किसान संघ।
नरवाई जलाने से रोकने के लिए कलेक्टर द्वारा धारा 144 के प्रतिबंधात्मक आदेश जारी किए गए हैं। इसके लिए कृषि विभाग खेतों में पहुंचकर जागरुकता अभियान चला रहा है। इसके साथ ही कृषि यंत्रों से अवशेष के उपयोग पर भी ध्यान केन्द्रित कराया गया हैं।
-जितेन्द्र कुमार सिंह, उपसंचालक कृषि।