सरकारी नियम से स्टोर रुम और ओपीडी में होना चाहिए 252 प्रकार की दवाइयां
छिंदवाड़ा
Updated: May 06, 2022 09:03:22 pm
छिंदवाड़ा. जिला अस्पताल में इस समय मौसमी उल्टी दस्त, आंत्रशोथ, साधारण दर्द से लेकर ऑपरेशन के लिए जरूरी जीवनरक्षक इंजेक्शन और दवाइयां गायब हैं। मजबूरी में मरीजों और उनके परिजनों को ये दवाइयां मेडिकल स्टोर्स से हजारों रुपए में खरीदनी पड़ रही है। अस्पताल प्रबंधन इस समस्या का निराकरण नहीं कर पाया है तो वहीं प्रशासनिक अधिकारी भी इसकी सुधि नहीं ले रहे हैं।
स्वास्थ्य विभाग के नियम के अनुसार जिला अस्पताल में 252 प्रकार की जीवन रक्षक दवाइयां हर समय उपलब्ध होनी चाहिए। जिसमें बुखार की पैरासिटामाल से लेकर दर्द की दवाइयां, सर्पदंश, श्वान काटने, टिटनेस, ओण्डम, डाइक्लोनिक इंजेक्शन, ऑपरेशन, गायनिक सामग्री तथा जीवन रक्षक बॉटल व अन्य शामिल हैं। इस सूची के अनुसार मैदानी उपलब्धता देखी जाए तो 50 फीसदी दवाइयां और इंजेक्शन नहीं मिलेंगे। अस्पताल में आनेवाला मरीज इतनी तकलीफ में होता हैं कि जैसे ही डॉक्टर की पर्ची में लिखी दवाइयां और इंजेक्शन नहीं मिलते, तुरंत ही परिजन मेडिकल स्टोर्स दौड़ पड़ते हैं। जबकि उसे उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी अस्पताल प्रबंधन की है। प्रशासनिक अधिकारियों को भी समीक्षा करने की फुरसत नहीं मिल रही है कि अस्पताल में कितनी दवाइयां नहीं हैं। वे सरकारी आंकड़ों की वाह-वाही में ही मस्त दिख रहे हैं।
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किसी भी मरीज से पूछ लो तो यहीं करेगा शिकायत
अस्पताल में आनेवाले मरीजों की मुंह जुबानी सुनें तो इंजेक्शन कक्ष में एक्सीडेंट व चोट में लगनेवाले टीटी, डाइक्लोनिक, उल्टी दस्त का ओण्डम इंजेक्शन नहीं है तो हाथ-पैर की पीड़ा में लगानेवाले डाइक्लो जेल भी नहीं मिलेगा। वार्ड में आईवी और जीवन रक्षक बॉटल भी मरीजों से बुलाई जा रही है। चर्म रोग चिकित्सकों द्वारा लिखे जानेवाले मरहम भी दवा वितरण केन्द्र में लम्बे समय से गायब हैं। नाक-कान-गला के मरीज भी दवाइयां न मिलने की शिकायत कर रहे हैं।
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ऑपरेशन कक्ष में पहुंचने पर पहले ले आओ दवाइयां
गायनिक सीजर, दुर्घटना और पेट से संबंधित जितने भी ऑपरेशन होते हैं, उनमें स्लाइन से लेकर अन्य दवाइयां और इंजेक्शन की सूची डॉक्टर मरीज के परिजनों को पकड़ा देते हैं। दुर्घटना में पैर की राड तक बाहर से लानी पड़ती है। डॉक्टर खुद स्वीकार कर रहे हैं कि स्टोर रुम से दवाइयां व इंजेक्शन नहीं मिल रहे हंै। मजबूरी में मेडिकल स्टोर्स से बुलानी पड़ती है।
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80 फीसदी बाहर की,शेष की स्थानीय खरीदी
अस्पताल में 80 फीसदी दवाइयां शासन स्तर से थोकबंद खरीदी कर भेजी जाती है। इसके चलते किसी भी दवा की सौ पैकेट मांगो तो मिलते केवल दस हैं। इसके साथ ही 20 फीसदी जरूरी दवाइयां, इंजेक्शन व मेडिकल सामग्री रोगी कल्याण समिति के माध्यम से खरीदी जा रही है।
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इनका कहना है...
अस्पताल में जीवनरक्षक दवाइयों, इंजेक्शन और मेडिकल सामग्री की कमी को देखते हुए शासन को मांग पत्र भेजा गया है। इसकी आपूर्ति होने पर ही व्यवस्थाएं सुचारू हो पाएंगी। इसके साथ ही रोगी कल्याण समिति के माध्यम से भी खरीदी की जा रही है।
-डॉ.शिखर सुराना, सिविल सर्जन, जिला अस्पताल।
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