इसके साथ ही पुनरीक्षित राष्ट्रीय क्षय नियंत्रण कार्यक्रम के तहत नए रोगियों को खोजना तथा डॉट्स पद्धति से निशुल्क उपचार मुहैया कराना है। थीम के तहत वर्तमान और भविष्य की नवीन पीढिय़ों को क्षय रोग के संक्रमण से बचाना तथा रोग मुक्त देश व समाज का निर्माण करना है।
जिले में क्षय रोग के उपचार तथा पहचान के लिए 11 ट्रीटमेंट यूनिट तथा 21 माइक्रोस्कोपिक सेंटर संचालित हैं। जहां बलगम की निशुल्क जांच तथा दवाइयां उपलब्ध कराईं जाती हंै। मेडिकल कॉलेज अंतर्गत क्षय रोग विभाग के एचओडी डॉ. भूपेंद्र जैन ने बताया कि वर्तमान समय में टीबी रोग का उपचार संभव है। कुछ लोग इसे समाजिक दंश मानकर छिपाने का प्रयास करते हैं, जो अन्य लोगों के लिए घातक हो सकता है।
ट्रीटमेंट सपोर्टर को मिलता है मानदेय –
क्षय रोगी का उपचार पूर्ण होने पर प्रत्येक ट्रीटमेंट सपोर्टर को शासन से निर्धारित मानदेय प्रदान किया है। इसके तहत कैटेगरी-1 में एक हजार, द्वितीय में 1500, चतुर्थ में पांच हजार दिए जाते हैं।
ये हैं लक्षण तथा उपचार
दो सप्ताह या इससे अधिक समय की खांसी, सीने में दर्द, शाम के समय बुखार आना, भूख न लगना, वजन कम होना, खंखार में खून आना, रात में पसीना आना इस बीमारी के लक्षण हैं। क्षय रोग से ग्रसित व्यक्ति की खंखार जांच के लिए दो नमूने लिए जाते हंै। पहला तत्काल तथा दूसरा सुबह की खंखार का लिया जाता है। टीबी की पहचान के लिए सबसे कारगर तरीका माइक्रोस्कोपिक सेंटर द्वारा स्लाइड की जांच करना है। इससे टीबी के बैक्टीरिया आसानी से देखे जा सकते है।
इन सेंटरों में होती जांच
छिंदवाड़ा में जिला अस्पताल, जिला क्षय आरोग्य केंद्र, चांदामेटा में सिविल अस्पताल, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र परासिया, डब्ल्यूसीएल हॉस्पिटल बडक़ुही, जुन्नारदेव में सामुदायिक अस्पताल, प्राथमिक अस्पताल दमुआ, कन्हान अस्पताल, अमरवाड़ा में सिविल अस्पताल, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र सिंगोड़ी, हर्रई में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद बटकाखापा, चौरई में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र खमारपानी, तामिया, सौंसर में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र रामाकोना, पांढुर्ना, मोहखेड़, बिछुआ आदि शामिल है।