अरविंद के पिता अमीर सिंह विश्वकर्मा तबला वादक रहे। अरविंद ने बताया कि घर में शुरु से ही संगीत का माहौल रहा है। मैंने शुरु में तबला सीखना चाहा, लेकिन भाग्य ने साथ नहीं दिया। मेरी अंगुली में फैक्चर हो गया और मुझे ऑपरेशन कराना पड़ा। इसके बावजूद भी मैंने हार नहीं मानी और सबसे कठिन वायलिन वाद्ययंत्र को सीखने का प्रण लिया। फिर मैंने छिंदवाड़ा में स्व. पं. केदारनाथ विश्वकर्मा एवं नागपुर में पं. सूर्यमणी प्रभाकर धाकड़े से वायलिन वाद्ययंत्र की शिक्षा ली।
अरविंद ने बताया कि वायलिन को सीखने के लिए सबसे जरूरी है कि आपके पास अच्छा गुरु हो। मैंने कही सुना था कि नागपुर निवासी पं. सूर्यमणी प्रभाकर धाकड़े वायलिन में पारंगत हैं। एक दिन उनका कार्यक्रम छिंदवाड़ा में आयाजित हुआ। मैं उनसे मिला और सीखने की इच्छा जताई। उन्होंने मुझे रविवार को नागपुर आने के लिए कहा। मैं हर रविवार नागपुर जाता और गुरुजी मुझे अगली बार आने को कहकर वापस भेज देते। ऐसे ही लगातार चार से पांच रविवार मैं नागपुर गया। इसके बाद गुरुजी मुझे अपने घर पर ही सीखाते और खाना खिलाते। अरविंद कहते हैं कि यह जरूरी नहीं कि किसी सफलता के लिए संगीत सीखा जाए इसमें अजब का सुकून है।