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Violin day: गुरु ने शिष्य की ली ऐसी परीक्षा, फिर किया पारंगत, पढ़ें पूरी खबर

locationछिंदवाड़ाPublished: Dec 14, 2019 01:14:29 pm

Submitted by:

ashish mishra

पाश्चात्य संगीत से लेकर हर तरह के संगीत में किया जाता है।

Violin day: गुरु ने शिष्य की ली ऐसी परीक्षा, फिर किया पारंगत, पढ़ें पूरी खबर

Violin day: गुरु ने शिष्य की ली ऐसी परीक्षा, फिर किया पारंगत, पढ़ें पूरी खबर


छिंदवाड़ा. वायलिन विश्व के सबसे लोकप्रिय वाद्ययंत्र में से एक है, जिसका प्रयोग पाश्चात्य संगीत से लेकर हर तरह के संगीत में किया जाता है। हालांकि बदलते समय के साथ वायलिन वाद्ययंत्र अपना अस्तित्व खोता जा रहा है। इसके बावजूद भी आज भी कई लोग हैं जो इस वाद्ययंत्र के प्रति अटूट प्रेम रखते हैं। शुक्रवार को वायलिन डे के उपलक्ष्य में हमने ऐसे ही वायलिन कलाकार बनगांव निवासी 42 वर्षीय अरविंद कुमार विश्वकर्मा से बातचीत की। पेशे से साइंस के शिक्षक अरविंद कहते हैं कि इस वाद्ययंत्र को सीखने में काफी समय लगता है। इसके लिए आपमें लगन के साथ अच्छे गुरु का होना भी बहुत जरूरी है। अरविंद ने बताया कि समय के साथ काफी बदलाव आ चुका है। लोग क्लासिकल म्यूजिक से जुडऩा नहीं चाहते। जबकि इसमें अजब का सुकुन है। इसका स्वर बहुत मीठा होता है। अरविंद कहते हैं कि नई-नई तकनीक ने वायलिन की जरूरत को लगभग खत्म कर दिया है। आज कैसियों में ही सारे साउंड निकल जाते हैं। इसे सीखना भी आसान होता है। जबकि वायलिन वाद्ययंत्र से जो संगीत निकलता है उसका कोई तोड़ नहीं।
अंगुली के ऑपरेशन के बाद लिया था निर्णय
अरविंद के पिता अमीर सिंह विश्वकर्मा तबला वादक रहे। अरविंद ने बताया कि घर में शुरु से ही संगीत का माहौल रहा है। मैंने शुरु में तबला सीखना चाहा, लेकिन भाग्य ने साथ नहीं दिया। मेरी अंगुली में फैक्चर हो गया और मुझे ऑपरेशन कराना पड़ा। इसके बावजूद भी मैंने हार नहीं मानी और सबसे कठिन वायलिन वाद्ययंत्र को सीखने का प्रण लिया। फिर मैंने छिंदवाड़ा में स्व. पं. केदारनाथ विश्वकर्मा एवं नागपुर में पं. सूर्यमणी प्रभाकर धाकड़े से वायलिन वाद्ययंत्र की शिक्षा ली।
गुरु एक माह तक लेते रहे परीक्षा
अरविंद ने बताया कि वायलिन को सीखने के लिए सबसे जरूरी है कि आपके पास अच्छा गुरु हो। मैंने कही सुना था कि नागपुर निवासी पं. सूर्यमणी प्रभाकर धाकड़े वायलिन में पारंगत हैं। एक दिन उनका कार्यक्रम छिंदवाड़ा में आयाजित हुआ। मैं उनसे मिला और सीखने की इच्छा जताई। उन्होंने मुझे रविवार को नागपुर आने के लिए कहा। मैं हर रविवार नागपुर जाता और गुरुजी मुझे अगली बार आने को कहकर वापस भेज देते। ऐसे ही लगातार चार से पांच रविवार मैं नागपुर गया। इसके बाद गुरुजी मुझे अपने घर पर ही सीखाते और खाना खिलाते। अरविंद कहते हैं कि यह जरूरी नहीं कि किसी सफलता के लिए संगीत सीखा जाए इसमें अजब का सुकून है।
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