बिचौलियों को क्यों मिल जाती है प्राथमिकता
परिवहन से मुक्ति: दरअसल किसानों को खेतों से केंद्रों तक मंडी तक लाने में प्रति क्विंटल करीब 100 रुपए तक खर्च करने ही पड़ते हैं। इस प्रक्रिया में समय भी ज्यादा लगता है। मंडी पर किसानों को क्या भाव मिले यह तय नहीं रहता जबकि जमाखोर या बिचौलिए सीधे खेतों से अपने ही खर्च पर गेहूं ले जाते हैं।
सीधा नकद भुगतान: व्यापारियों से किसानों को समर्थन मूल्य से ज्यादा राशि मिलने के साथ ही सीधा नकद भुगतान भी हो रहा है। समय की बचत भी होती है।
पेचीदगी: गेहूं बेचने के लिए किसानों को ऑनलाइन स्लॉट बुक कराना आवश्यक है। इसके अलावा भी समर्थन मूल्य पर गेहूं बेचने के लिए अन्य नियम भी जटिल हैं।
जहां ज्यादा फायदा वहां बिक्री: किसानों को जहां फायदा होगा वहीं अपनी उपज बेचेगा। समर्थन मूल्य पर बेचने में घाटा है क्योंकि समर्थन मूल्य सिर्फ 2015 रुपए प्रति क्विंटल है। वहीं किसानों को इसमें से प्रति क्विंटल 20 रुपए सफाई के लिए देना है। वहीं व्यापारी समर्थन मूल्य से ज्यादा में खरीद रहे हैं।
किसान भी कर रहे स्टॉक: कई किसानों ने गेहूं का स्टॉक करके रख लिया है उनका कहना है कि बाद में बेचेंगे क्योंकि बाद में बेचने पर उन्हें ज्यादा राशि मिलेगी।