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महिला कोटवार -पिता ने बेटों से ज्यादा योग्य मान कर सौंपी जिम्मेदारी

locationछिंदवाड़ाPublished: May 23, 2022 07:35:05 pm

Submitted by:

Rahul sharma

पिता ने कहा बेटा खिलंदड़ा है । मुझे तुम पर भरोसा है । इस जिम्मेदारी को तुम बेहतर ढंग से निभाओगी । भाइयों ने विरोध किया। बेटी पिता की भावनाओं का सम्मान करते हुए लड़ी। प्रशासन ने भी साथ दिया। कई मामले ऐसे भी हैं जब शादी होने के बाद बेटी ससुराल चली गई फिर भी पिता ने बेटी को ही इस पद के लिए चुना।

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Woman Kotwar – Father entrusted the responsibility considering him more deserving than sons

छिन्दवाड़ा. सदियों से गांव की सेवा कर रहे कोटवार आज अपनी तार्किक मांगों के लिए आंदोलनरत हैं।सरकार भले ही उनकी नहीं सुन रही पर प्रशासन में बैठे अधिकारी कि मानते है ये जमीन से जुड़े और एकलव्य जैसी निष्ठा से काम करने वाले कर्मचारी है। एक आवाज पर हाजिर होने वाले कोटवारों में महिलाएं भी है। काम के प्रति समर्पण इनका समर्पण गजब का है।कोटवार का पद वंशानुगत माना जाता है। हालांकि जरूरत पडऩे पर सरकारी प्रक्रिया से भी इनकी भर्ती होती है। कोटवार का स्वास्थ्य जब जवाब देने लगता है तो वह अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करता है। पुरुष प्रधान समाज में यह पद बेटे को मिलता है पर ऐसे कई उदाहरण है जब कोटवार पद की अहमियत समझते हुए पिता ने बेटे की बजाय योग्य बेटी को कोटवार बनवाया।बातचीत में महिला कोटवारों ने बताया पिता ने कहा कि बेटा खिलंदड़ा है । मुझे तुम पर भरोसा है । इस जिम्मेदारी को तुम बेहतर ढंग से निभाओगी । भाइयों ने विरोध किया। बेटी पिता की भावनाओं का सम्मान करते हुए लड़ी। प्रशासन ने भी साथ दिया। कई मामले ऐसे भी हैं जब शादी होने के बाद बेटी ससुराल चली गई फिर भी पिता ने बेटी को ही इस पद के लिए चुना। वे खरी भी उतर रही हैं।महिला कोटवार सफल हैं। कोरोना काल में उन्होंने घर-घर जा कर महिलाओं -बच्चों को बेहतर ढंग से समझाया। वैक्सीनेशन हो या परिवार नियोजन अभियान वे महिलाओं को आंगनबाड़ी व अस्पताल तक ले जाने में ज्यादा सहयोगी है। ग्रामीण भी बताते हैं-सरकारी कामकाज तो हैं ही। महिलाओं की पीड़ा सुनना। उन्हें समझाना और सकारात्मक बनाए रखने में उनकी भूमिका से कोई इनकार नहीं कर सकता। उनकी पहुंच रसोई तक है। महिलाएं खुल कर अपनी बात उनसे कह सकती हैं।महिला कोटवारों ने बताया। हमारे पिता ने कहा ये बड़ी जिम्मेदारी है। इस पद की प्रतिष्ठा को और बढ़ाना। सही है पर , सैकड़ों साल हो गए हम सिर्फ कोटवार ही बने रहे। हमें भी पदोन्नति मिलनी चाहिए । मानदेय बढ़े। जरूरी सुविधाएं मिलें । अभी सिर्फ राजशाही जमाने की परम्परा के अनुसार बल्लम मिलता है। एक बेल्ट और ड्रेस । अब जमाना बदल चुका है। सरकारी आदेश मोबाइल पर मिलता है। उसका रिचार्ज भी हमें कराना होता है। पूरे गांव में पैदल चक्कर लगाते हैं। एक कोटवार के पास कम से कम छह-सात किमी के दायरे में बसे आसपास के तीन-चार गांव होते हैं। दुपहिया वाहन के लिए भत्ता तो मिलना चाहिए। मुनादी के लिए घर-घर जाते हैं। या फिर तेज आवाज में बोलना पड़ता है। कम से कम पोर्टेबल लाउड स्पीकर तो मिले। सीमांकन हो या बंटवारा , पुलिस अदालत का आदेश तामील कराना हो या ग्राम पंचायत की बैठक में रजिस्टर घुमाना। ऐसा कोई काम नहीं जो हमसे नहीं कराया जाता। आज चार हजार रुपए से क्या हो। इसलिए कोटवार मजदूरी करते हैं। मनरेगा में काम मिल जाए तो ठीक नहीं तो दूसरे के खेतों पर काम करते हैं। हाल ही में तेन्दुपत्ता तोडऩे का काम भी महिला कोटवारों ने किया है। सरकार खेती के लिए जो जमीन देती है, वह पथरीली होती है। अधिकांश ने जमीन सरेंडर कर दी है। जमीन देने पर सरकार मानदेय 300 रुपए तक ही देती है। जमीन ही देनी है तो सिंचित दे और उसका मालिकाना हक भी मिले। महिला कोटवारों ने बताया हमारी कोई लम्बी चौड़ी मांग तो है नहीं। सरकार मानदेय बढ़ा दे और अपना कर्मचारी मान ले। कम से कम सरकार की ओर से तय कलेक्टर रेट पर मजदूरी तो मिले। ग्राम पंचायत कोल्यारी की कोटवार इन्द्रा डेहरिया कहती है कि जिम्मेदारी वाली नौकरी है। पूरी निष्ठा से करते हैं। अधिकारी भी मानते और सहयोग करते हैं। हमारे काम को देखते हुए सरकार कम से कम 500 रुपए रोजाना के हिसाब से वेतन दे।
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