पहले वर्ष महज नौ बच्चों ने दाखिला लिया। शिक्षा मेरे काफी काम आई। काफी मेहनत की और फिर अगले साल ही 99 बच्चों ने दाखिला लिया। इसके बाद धीरे-धीरे सफलता मिलती गई। डॉ. बरखा कहती हैं कि मेरे परिवार के हर सदस्य के साथ मेरी सास सुरजीत कौर बेदी ने मुझे हर कदम पर मार्गदर्शन एवं सहयोग दिया। मैं स्कूल में रहती थी तो मेरे दोनों बच्चों को वह सम्भालती थीं। ऐसा कभी लगा नहीं कि वह मेरी सास हैं।
हमेशा उन्होंने मुझे एक बेटी की तरह रखा। स्कूल की मान्यता के लिए ससुर मेरे साथ जबलपुर, भोपाल तक गए। पति हर कदम पर मेरे साथ रहते हंै। यही वजह है कि आज उन्होंने उमरानाला, बिसापुर, उमरेठ, शिवपुरी और छिंदवाड़ा में दो स्कूल खोल लिए हैं। डॉ. बरखा कहती हैं कि परिवार के साथ वाहेगुरु का मेरे ऊपर आशीर्वाद रहा। मैं सभी की शुक्रगुजार हूं।