अगर आप जंगली रास्ते से गुजर रहे हैं तो सावधान हो जाएं क्योंकि उन रास्तों पर आपका सामना मौत से हो सकता है। क्या पता कोई खतरनाक जंगली जानवर आपके ऊपर हमला कर दे और आपकी जिंदगी मुश्किल में पड़ जाए। जंगल के रास्तों पर असावधानी बरतना ऐसे ही एक किसान को भारी पड़ गया। आदमखोर रीछ के हमले और उससे मुकाबले में किसान और रीछ(भालू) दोनों को गहरे जख़्म हुए लेकिन अंत में किसान जिंदगी की जंग।
बरामद हुआ क्षत विक्षत शव
जनपद के बरगढ़ थाना क्षेत्र के डोरिया जंगल में आदिवासी किसान शिवजतन कोल (45) की क्षत विक्षत लाश पाई गई। शव के पास ही काफी मात्रा में खून और किसी जंगली जानवर के बड़े बड़े बाल और पंजों के निशान थे। शिवजतन सुबह डोरिया जंगल में लकड़ी काटने गया था। काफी देर तक जब वह वापस नहीं लौटा तो परिजनों ने उसकी तलाश शुरू की और उस दौरान शिवजतन की लाश जंगल में एक स्थान पर पाई गई।
जनपद के बरगढ़ थाना क्षेत्र के डोरिया जंगल में आदिवासी किसान शिवजतन कोल (45) की क्षत विक्षत लाश पाई गई। शव के पास ही काफी मात्रा में खून और किसी जंगली जानवर के बड़े बड़े बाल और पंजों के निशान थे। शिवजतन सुबह डोरिया जंगल में लकड़ी काटने गया था। काफी देर तक जब वह वापस नहीं लौटा तो परिजनों ने उसकी तलाश शुरू की और उस दौरान शिवजतन की लाश जंगल में एक स्थान पर पाई गई।
रीछ ने किया हमला
मृतक किसान के चाचा हीरालाल के मुताबिक जिस जानवर के पंजों के निशान और बाल पड़े हुए थे वह रीछ(भालू) के मालूम पड़ते हैं क्योंकि अक्सर जंगल में आदमखोर रीछ को देखा जाता है। सावधानी से चलने पर जानवर हमला नहीं कर पाते और यदि कोई अस्त्र शस्त्र पास में हो तो हमले से बचा जा सकता है। शिवजतन के शरीर पर बड़े बड़े पंजों के निशान थे और पूरा शरीर लहूलुहान हो चुका था। उसके पास भी कुल्हाड़ी मौजूद थी जिससे रीछ से उसने मुकाबला किया होगा लेकिन खतरनाक और भारी भरकम रीछ के जानलेवा हमले में शिवजतन जिंदगी की जंग हार गया और उसकी मौत हो गई। घटना की सूचना पर पहुंची पुलिस ने भी रीछ द्वारा हमला करने की तस्दीक करते हुए शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेजा।
मृतक किसान के चाचा हीरालाल के मुताबिक जिस जानवर के पंजों के निशान और बाल पड़े हुए थे वह रीछ(भालू) के मालूम पड़ते हैं क्योंकि अक्सर जंगल में आदमखोर रीछ को देखा जाता है। सावधानी से चलने पर जानवर हमला नहीं कर पाते और यदि कोई अस्त्र शस्त्र पास में हो तो हमले से बचा जा सकता है। शिवजतन के शरीर पर बड़े बड़े पंजों के निशान थे और पूरा शरीर लहूलुहान हो चुका था। उसके पास भी कुल्हाड़ी मौजूद थी जिससे रीछ से उसने मुकाबला किया होगा लेकिन खतरनाक और भारी भरकम रीछ के जानलेवा हमले में शिवजतन जिंदगी की जंग हार गया और उसकी मौत हो गई। घटना की सूचना पर पहुंची पुलिस ने भी रीछ द्वारा हमला करने की तस्दीक करते हुए शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेजा।
ग्रामीणों में दहशत
किसान पर रीछ के हमले और उसकी(किसान की) मौत से ग्रामीणों में दहशत व्याप्त हो गई है। जंगल में लकड़ियां काट अपना जीवन यापन करने वाले आदिवासी मजदूर ग्रामीण और राहगीर सहमे हुए हैं। कहा जाता है कि जब किसी जंगली जानवर के मुंह में इंसानी खून लग जाता है तो वह खतरनाक आदमखोर बन जाता है, कुछ ऐसी ही आशंका के चलते जंगल के आस पास के इलाकों में खौफ कायम हो गया है। हालांकि वन विभाग और पुलिस ने ग्रामीणों से न डरने की बात कहते हुए उन्हें सुरक्षा का भरोसा दिलाया है।
किसान पर रीछ के हमले और उसकी(किसान की) मौत से ग्रामीणों में दहशत व्याप्त हो गई है। जंगल में लकड़ियां काट अपना जीवन यापन करने वाले आदिवासी मजदूर ग्रामीण और राहगीर सहमे हुए हैं। कहा जाता है कि जब किसी जंगली जानवर के मुंह में इंसानी खून लग जाता है तो वह खतरनाक आदमखोर बन जाता है, कुछ ऐसी ही आशंका के चलते जंगल के आस पास के इलाकों में खौफ कायम हो गया है। हालांकि वन विभाग और पुलिस ने ग्रामीणों से न डरने की बात कहते हुए उन्हें सुरक्षा का भरोसा दिलाया है।
जंगल में मौजूद हैं कई खतरनाक जानवर
पाठा के जंगलों में कई खतरनाक जानवरों के मौजूद होने की तस्दीक अक्सर होती रहती है। सबसे खास बात यह कि इलाके के कई महत्वपूर्ण रास्ते घने जंगल और बीहड़ों से होकर जाते हैं। रानीपुर वन्य जीव बिहार के अंदर से ही कई गांवों के मार्ग लगे हुए हैं। ऐसे में जंगली जानवरों के हमलों का खतरा हमेशा बना रहता है लेकिन चूंकि गाहे बगाहे डकैतों और पुलिस के बीच गोलियों की आवाज गूंजती रहती है सो जानवर भी काफी हद तक बीहड़ की मांद में छिपे रहते हैं। इसकी वजह से उन्हें कई कई दिन भूखा भी रहना पड़ता है और परिणामतः वे आदमखोर बन जाते हैं।
पाठा के जंगलों में कई खतरनाक जानवरों के मौजूद होने की तस्दीक अक्सर होती रहती है। सबसे खास बात यह कि इलाके के कई महत्वपूर्ण रास्ते घने जंगल और बीहड़ों से होकर जाते हैं। रानीपुर वन्य जीव बिहार के अंदर से ही कई गांवों के मार्ग लगे हुए हैं। ऐसे में जंगली जानवरों के हमलों का खतरा हमेशा बना रहता है लेकिन चूंकि गाहे बगाहे डकैतों और पुलिस के बीच गोलियों की आवाज गूंजती रहती है सो जानवर भी काफी हद तक बीहड़ की मांद में छिपे रहते हैं। इसकी वजह से उन्हें कई कई दिन भूखा भी रहना पड़ता है और परिणामतः वे आदमखोर बन जाते हैं।
फोटो- फाइल तस्वीर