अन्ना मवेशियों के भी अन्नदाता बने किसान अन्ना जानवरों से खेतों की रखवाली के लिए जहां इस सर्द रात में किसानों को ठिठुरते हुए रतजगा करना पड़ रहा है। वहीं कोई रास्ता न दिखाई देने पर किसान खुद अपने स्तर से इस भीषण समस्या से निपट रहे है हैं। बतौर उदाहरण जनपद के सरैयां, बरहा कोटरा, भागवतपुर, छीबों आदि गांवों में किसान आपस में ही मिलकर गोशालाओं का संचालन कर रहे हैं। क्षमता के अनुसार कहीं 50 तो कहीं 100 अन्ना जानवर रखे गए हैं। बारी-बारी से ग्रामीणों की ड्यूटी लगती है, जानवरों की देखभाल जंगल में उन्हें चराने के लिए। ऐसी ही एक गोशाला का संचालन कर रहे मऊ विकासखण्ड के बराह कोटरा के युवा किसान इन्द्रेश त्रिपाठी, पप्पू बराह, चन्द्रेश, हरिश्चंद्र पाल रामचंद्र पाल आदि ने बताया कि वे अपने स्तर से गोशाला बनाकर उनका संचालन करते हैं। आपस में ही मिलकर किसी तरह इन मवेशियों के लिए चारा भूसा पानी का इंतजाम किया जाता है। इसके बावजूद भी खेतों में रतजगा करना पड़ता है।
ये इलाके हैं सर्वाधिक प्रभावित
जनपद का पाठा क्षेत्र हो या तराई इन सभी इलाकों में अन्ना मवेशियों की सुरसा रूपी समस्या किसानों के लिए काल बन रही है। पाठा क्षेत्र के किसान राजू, सुभाष, कुलदीप, रामनरेश आदि ने दर्द बयां करते हुए बताया कि अन्ना मवेशियों से उनकी मेहनत नष्ट हो रही है। जिलाधिकारी विशाख जी अय्यर का कहना है कि प्रशासन इस समस्या को लेकर पूरी तरह संजीदा है। ग्रामीणों की पहल भी सराहनीय है। प्रशासन उनकी हर सम्भव मदद का प्रयास कर रहा है।
जनपद का पाठा क्षेत्र हो या तराई इन सभी इलाकों में अन्ना मवेशियों की सुरसा रूपी समस्या किसानों के लिए काल बन रही है। पाठा क्षेत्र के किसान राजू, सुभाष, कुलदीप, रामनरेश आदि ने दर्द बयां करते हुए बताया कि अन्ना मवेशियों से उनकी मेहनत नष्ट हो रही है। जिलाधिकारी विशाख जी अय्यर का कहना है कि प्रशासन इस समस्या को लेकर पूरी तरह संजीदा है। ग्रामीणों की पहल भी सराहनीय है। प्रशासन उनकी हर सम्भव मदद का प्रयास कर रहा है।
इस तरह हो रही खेतों की रखवाली
फसलों को अन्ना मवेशियों से बचाने के लिए किसानों को खेतों में बने मचान पर इस सर्द रात में ठिठुरते हुए जगना पड़ रहा है। पास में लाठी और टॉर्च के माध्यम से अंधेरी रात में अन्ना मवेशियों को तकना पड़ता है। वहीं जंगली जानवरों व सर्द हवाओं से जान का खतरा भी बना रहता है अन्नदाताओं को।
फसलों को अन्ना मवेशियों से बचाने के लिए किसानों को खेतों में बने मचान पर इस सर्द रात में ठिठुरते हुए जगना पड़ रहा है। पास में लाठी और टॉर्च के माध्यम से अंधेरी रात में अन्ना मवेशियों को तकना पड़ता है। वहीं जंगली जानवरों व सर्द हवाओं से जान का खतरा भी बना रहता है अन्नदाताओं को।