जनपद के मिर्जापुर झाँसी राष्ट्रीय राजमार्ग पर उस समय हंगामें की स्थिति उतपन्न हो गई जब ट्रक की चपेट में आने से एक 7 वर्षीय बालक की मौके पर ही दर्दनाक मौत हो गई। घटना रैपुरा थाना क्षेत्र अंतर्गत भौंरी गांव के पास हुई। जानकारी के मुताबिक बिहार का रहने वाला अनिल बिंद परिवार का पेट पालने के लिए चित्रकूट में रहकर मजदूरी का काम करता था। इन दिनों वह जनपद के रैपुरा थाना क्षेत्र अंतर्गत भौंरी ऐंचवारा गाँव के बीच बन रहे संपर्क मार्ग के निर्माण कार्य में मजदूरी कर रहा था। उसका परिवार भी उसके साथ रहता है। गुरूवार को मिर्जापुर झांसी राष्ट्रीय राजमार्ग पर तेज रफ़्तार ट्रक ने उसके 7 वर्षीय बालक कुन्दाल को रौंद दिया जिससे उसकी मौके पर ही दर्दनाक मौत हो गई। घटना के बाद गुस्साए ग्रामीणों मजदूरों ने सड़क मार्ग पर जाम लगाकर आवागमन बाधित कर दिया। मार्ग पर ट्रैक्टर ट्रक आदि बेतरतीब ढंग से खड़ा करते हुए मार्ग पर जाम लगाया गया। घटना की सूचना पर पहुंची पुलिस ने काफी देर तक लोगों को समझा बुझाया तब जाकर कहीं जाम समाप्त हुआ। इन मजदूरों को सम्बंधित ठेकेदार के आदमी बिहार से मजदूरी के लिए ले आते हैं।
खतरनाक है राष्ट्रीय राजमार्ग राष्ट्रीय राजमार्ग पर सुरक्षा के कोई मापदण्ड न होने से यह मार्ग खतरनाक होता जा जा रहा है। सड़क पर डिवाइडर न होने से तेज रफ़्तार बड़े छोटे वाहन बेतरतीब तरीके से आगे निकलने की होड़ में ओवरस्पीड हो जाते हैं। सड़क के किनारों पर कई ग्रामीण अपना बसेरा बनाकर रहते हैं और गाँव भी पड़ते हैं। अक्सर तेज रफ़्तार वाहनों की चपेट में आकर राजमार्ग पर दर्दनाक हादसे होते रहते हैं। ऐसे ही एक हादसे में लगभग पांच वर्ष पहले अनि
यंत्रित स्विफ्ट डिजायर कार ने असंतुलित होते हुए सड़क खेल रहे पांच बच्चों को रौंद दिया था जिससे उनकी मौके पर ही मौत हो गई थी। घटना के बाद लोगों ने राजमार्ग पर डिवाइडर आदि की व्यवस्था करने की मांग की थी लेकिन सब ठंडे बस्ते में चला गया।
सस्ते में निपटा दी जाती है नुकसान की भरपाई रोजी रोटी के लिए अन्यत्र राज्यों से आकर मेहनत मजदूरी करने वाले मजदूरों की जिंदगी बहुत सस्ती है। चाहे वह क्रेशर मशीनों में काम करने वाले मजदूर हों चाहे किसी अन्य कार्यों में पसीना बहाते मजदूर हों। दर्दनाक हादसों में प्रतिवर्ष कई मेहनतकशों की सांसे थम जाती हैं लेकिन उनके नुकसान की भरपाई सम्बंधित ठेकेदार कार्यदायी संस्थाएं सस्ते में निपटा देती हैं। गरीब असहाय होने के कारण दबंगों से पीड़ित परिवार कुछ बोल भी नहीं पाते। बाहर से आए मजदूरों की स्थिति तो और दयनीय हो जाती है। उधर प्रशासन भी कभी इन मेहनतकश बाशिंदों की सुध नहीं लेता।