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सियासत की चाशनी बनकर रह गया पाठा, सुख सुविधाओं से आज भी बंजर है धरती

locationचित्रकूटPublished: Jul 11, 2018 02:27:11 pm

भगवान श्री राम की तपोस्थली चित्रकूट का पाठा क्षेत्र सियासत की चाशनी में ही लिपटा रह गया

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सियासत की चाशनी बनकर रह गया पाठा, सुख सुविधाओं से आज भी बंजर है धरती

चित्रकूट. भगवान श्री राम की तपोस्थली चित्रकूट का पाठा क्षेत्र सियासत की चाशनी में ही लिपटा रह गया जिसे सियासतदारों ने जब चाहा तब चखा और कुर्सी का सुख मिलते ही इस इलाके को बदहाली की फिर उसी भट्टी में झोंक दिया। हर बार पाठा को छला जाता रहा है। बेरोजगारी पलायन और अशिक्षा की ज्वलन्त तस्वीरें आज भी इस क्षेत्र की हकीकत बयां करती हैं। कोल आदिवासी बाहुल्य इलाके आज की 21 वीं सदी के विकासपरक भारत में मूलभूत सुख सुविधाओं से वंचित हैं और पाठा की धरती बंजर। अवैध शराब का कारोबार, दस्यु समस्या, जुएं के अड्डे आदि इस इलाके के युवाओं की बदकिस्मती बन चुके हैं। आजादी के बाद से आज तक क्षेत्र में ऐसी कोई हितकर योजना नहीं चलाई गई जिससे इलाकाई नौजवानों को रोजगार के प्रति एक दिशा मिल सकती थी। इन्ही मजबूरियों को भुनाते हुए सियासत के खिलाड़ियों ने आज भी पाठा को बैसाखी के सहारे छोड़ रखा है।

हालात जस के तस

प्रकृति की सुरम्य वादियों में स्थित चित्रकूट का मानिकपुर व् मारकुंडी क्षेत्र जिसे आमतौर पर पाठा के नाम से जाना जाता है आज भी अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। आजादी के इतने वर्षों बाद भी विकास का मुंह देखने को तरस रहा है ये इलाका। सरकारी योजनाओं में घपलेबाजी भ्रष्टाचार इस क्षेत्र की पहचान हैं। मनरेगा जैसी रोजगारपरक योजनाओं में घोटालेबाजों ने गले तक अपनी तिजोरियां भरी और इलाके में बेरोजगारी सुरसा का मुंह बन गई।

शिक्षा व्यवस्था पर भी ग्रहण

इलाके में साक्षरता की बात की जाए तो बीहड़ में पड़ने वाले विद्यालयों में शिक्षा व्यवस्था लगभग हाशिए पर है। बीहड़ व् दूर दराज के इलाकों में स्थित प्राथमिक विद्यालयों की मॉनिटरिंग करना हमेशा से प्रशासन के लिए टेढ़ी खीर साबित होता आया है। दस्यु प्रभावित इलाकों में कई बार अध्यापकों के साथ मारपीट और उनके अपहरण की घटनाओं ने कहीं न कहीं दहशत के बीज बो दिए हैं शिक्षकों और अभिभावकों में। दुर्गम स्थानों के लगभग 150 से अधिक गांवों में सवा सौ प्राथमिक विद्यालय हैं लेकिन शिक्षा की दशा बेहद खराब है। कोल आदिवासी बच्चे तो काफी कम संख्या में विद्यालय पहुंचते हैं जागरूकता के अभाव में।

स्वास्थ्य सुविधा भी हाशिए पर

इलाका स्वास्थ्य सुविधाओं की दुश्वारियों से वर्षों से जूझ रहा है। एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र को लेकर कुल 9 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं इलाके में लेकिन स्टाफ व् डॉक्टरों की कमी से इन केंद्रों में इलाज की बेहतर सुविधा हाल फ़िलहाल एक सपना ही है अभी तक। एक प्रकार से कहा जाए तो ये सभी केंद्र मरीजों के रेफर सेंटर बन गए हैं क्योंकि हालत थोड़ी सी भी गम्भीर हुई नहीं कि मरीजों को इलाहाबाद सतना(मध्य प्रदेश) कानपुर के लिए रेफर कर दिया जाता है।

घपलेबाजों की पहली पसन्द

पाठा सरकारी विकास कार्यों में घपलेबाजों की पहली पसन्द है। दुर्गम इलाकों में आवागमन के लिए बनाए गए रपटे छोटे पुल आदि भ्रष्टाचार की इस कदर भेंट चढ़े कि बारिश के दिनों में तो इन क्षेत्रों में पहुंचना लगभग असंभव सा हो जाता है। मानक के मुताबिक कार्य न कराकर कमीशनबाजी के चक्कर घपलेबाजों ने जमकर खेल किया। कई गांव जो छोटे छोटे रपटों पुलियों से मुख्य सम्पर्क मार्गों से जुड़े हैं वे बारिश के मौसम में कट जाते हैं और रपटे अब नहीं कि तब नष्ट होने का संकेत देने लगते हैं सो सावधानी बरतते हुए ग्रामीण भी आवागमन से बचते हैं। चेकडैम कुंओं के निर्माण कार्यों में तो लाखों करोङों का घपला कई बार उजागर हुआ जिनकी जांचे अभी भी चल रही हैं।

बीहड़ के शैतानों और सियासतदारों ने खूब भुनाया पाठा की मजबूरी को

दस्यु समस्या से पिछले चार दशकों से अधिक समय से दहशत की देहरी पर खड़े पाठा को बीहड़ के शैतानों ने अपनी शरणस्थली बनाई। सजातीय सहानुभूति और खौफ के बल पर खूंखार ददुआ ठोकिया रागिया बलखड़िया बबुली कोल गौरी यादव जैसे डकैतों ने यहां के युवाओं नौजवानों को जुर्म की दुनिया में बड़े ही शातिराना तरीके से इंट्री दिलवाई। सबसे ज्यादा कोल आदिवासी इन बड़े डकैतों के निशाने पर थे और आज बबुली कोल उसी निशाने का जीता जागता प्रमाण है। कुछ ऐसा ही खेल खेला सियासतदारों ने। वोटबैंक के लिए हर बार कोल आदिवासियों को मोहरा बनाया जाता है। लगभग 40 से 50 हजार कोल आदिवासी किसी भी चुनाव में निर्णायक की भूमिका में होते हैं सो सियासत के खिलाड़ी वक्त आने पर इन्हें बखूबी इस्तेमाल करते हैं और पाठा फिर उसी दहलीज पर खड़ा हो जाता है जहां से उसे चांद तारों के सपने दिखाए गए थे।

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