जब फसलें ही नहीं बचेंगी तो योजनाएं किस काम की
किसानों का कहना है कि जब फसलें ही नहीं बचेंगी तो योजनाएं किस काम की। दिन रात खेतों में रखवाली पड़ती है जीव जंतुओं का डर अलग से लेकिन मेहनत से तैयार की गई फसलों को कैसे यूं ही नष्ट होते देखा जा सकता है। अन्नदाताओं ने दर्द बयां करते हुए कहा कि कोई रास्ता नहीं सूझ रहा इनसे निपटने का।
कहां ले जाएं कहां छोड़ें
समस्या से निजात को लेकर किसानों का कहना है कि आखिर इन जानवरों को कहां ले जाएं कहां छोड़ें। जो गौशालाएं खोली गई हैं वो इतनी दूर दूर हैं कि वहां तक ले जाने में ही बल जान पड़ता है। दूसरी समस्या यह कि जब बाहरी इलाकों के अन्ना जानवरों को पशु आश्रय स्थलों या गौशालाओं में पहुंचाया जाता है तो स्थानीय लोग विरोध करते हैं और पुलिस भी परेशान करती है। किसानों के मुताबिक यदि हर बड़ी ग्राम पंचायतों में पशु आश्रय स्थल गौशालाएं स्थापित हो जाएं तो कम से कम आधी समस्या हल हो सकती है।
हांथों में लाठी दिन रात रखवाली
किसानों की आंखे बताती हैं कि वे कितनी थकी हुई हैं। हांथों में लाठी और दिन रात रखवाली कुछ ऐसा ही फ़लसफा बन गया है अन्नदाताओं का। कई ऐसे खेतिहर मजदूर हैं जो इन्ही अन्ना जानवरों की वजह से दूसरों का खेत अब बंटाई यानी अधिया पर नहीं लेते। उनका कहना है कि जब फसल ही नहीं बचेगी तो वो मालिक को क्या देंगे और खुद क्या खाएंगे इससे अच्छा शहरों व् कस्बों में ईट गारा मजदूरी करना है जिससे कम से कम उन्हें रोज नमक रोटी के लिए कुछ पैसे मिल जाते हैं।