scriptये हुजूम बयां करता है रामलीला की प्रासंगिकता और इसका महत्व | Chitrakoot raises Ramlila people | Patrika News

ये हुजूम बयां करता है रामलीला की प्रासंगिकता और इसका महत्व

locationचित्रकूटPublished: Sep 29, 2017 10:37:17 pm

Submitted by:

shatrughan gupta

रामलीला इन्हीं परम्पराओं संस्कृतियों में से एक है, जिसके माध्यम से समाज में बुराई पर अच्छाई की जीत का सन्देश मिलता है।

Chitrakoots Ramlila

Chitrakoots Ramlila

चित्रकूट. मर्यादा परुषोत्तम श्री राम के चरित्र और उनकी लीलाओं के प्रस्तुतिकरण का माध्यम है रामलीला मंचन। भारतीय लोक परम्परा संस्कृति और धार्मिक मान्यताएं लोगों को खुद से ही नहीं अपितु एक-दूसरे से भी जुड़ने की सीख देते हुए पुरे समाज को एक सूत्र में पिरोने की ज़िम्मेदारी निभा रही रही हैं। रामलीला इन्हीं परम्पराओं संस्कृतियों में से एक है, जिसके माध्यम से समाज में बुराई पर अच्छाई की जीत का सन्देश मिलता है तो वहीँ सामाजिक समरसता की भी अनूठी झलक रामलीला मंचन के दौरान उसके माध्यम से प्रस्तुत की जाती है। अभिनय की बात यदि की जाए तो भारतीय फ़िल्म इंडस्ट्री में मनोज बाजपेयी से लेकर आशुतोष राणा और नवाजुद्दीन सिद्दकी तक अपने क्षेत्रों के मंचों पर रामलीला में विभिन्न पात्रों को निभा चुके हैं और आज अभिनय जगत की बुलन्दियों पर आसीन हैं।
तात्पर्य यह कि रामलीला को जिस भी दृष्टिकोण से देखा जाए उसमें हर क्षेत्र के विषय में कुछ न कुछ सीख सन्देश जानकारी अवश्य छिपी होती है और आज भी 21वीं सदी में भारत की यह प्राचीन परम्परा देश ही नहीं दुनिया में भी अपनी पहचान अपना अस्तित्व बनाए हुए है। रामलीला मंचन ने गाँवों की गलियों से निकलते हुए महानगरों की लाइम लाइट दुनिया तक का सफर किया है, सात समंदर पार भी रामलीला ने भारत की लोक संस्कृति की पहचान कराइ तो साम्प्रदायिक सद्भाव की मिसाल भी कायम हुई, इस बात का प्रमाण है इंडोनेशिया जैसे मुस्लिम बाहुल्य देश के कलाकारों द्वारा रामलीला मंचन करना। रामलीला में ही इतने विविध रंग देखने को मिलते हैं।
आज के आधुनिक परिवेश में जब टेलीविजन की दुनिया में प्राइम टाइम पर लुभावने सीरियल्स प्रसारित होते हैं। ऐसे में रामलीला मंचन के नौ दिनों के दौरान शायद इन सीरियल्स की टीआरपी सबसे कम होती है। बड़े शहरों महानगरों में आधुनिक साज सज्जा स्पेशल इफ़ेक्ट के माध्यम से रामलीला मंचन को भावपूर्ण और आकर्षक दर्शाया जाता है तो वहीं ग्रामीण क्षेत्रों छोटे शहरों आदि में आज भी पारंपरिक वाद्ययंत्रों पर श्री रामचरितमानस की चौपाइयों पर अभिनय करते कलाकार लोगों को घण्टों बांधे रखने पर मजबूर कर देते हैं। रामलीला देखने के लिए उमड़े हुए हुजूम को देखकर यह कहना गलत नहीं होगा कि आज भी कायम है रामलीला की प्रासंगिकता और उसका महत्व।
लोक परम्परा संस्कृति कला और मान्यताओं की नींव पर खड़े भारतीय समाज में आज भी अपनी जड़ों से जुड़े रहने की ललक दिखती है और कई ऐसे माध्यम हैं, जो समाज भारत की प्राचीन परम्पराओं से जोड़े रखने का दायित्व बख़ूबी निभा रहे हैं। समाज को धर्म अधर्म अच्छा बुरा सत्य असत्य की पहचान और सीख देती हुई ये लोक परम्पराएं नित नई यात्रा की ओर अग्रसर हैं। रामलीला ऐसा ही एक माध्यम है समाज को एक डोर में पिरोने का और आज भी इस माध्यम का क्रेज समाज के बीच से कम नहीं बल्कि और मजबूती के साथ बढ़ा है। रामलीला देखने के लिए उमड़ने वाली भीड़ से इस बात की तस्दीक काफी हद तक स्पष्ट हो जाती है कि यदि समाज के सामने आकर्षक और रोचक तरीके से किसी कला का प्रस्तुतिकरण किया जाए तो मनोरंजन के नाम पर समाज के सामने फ़ूहडता प्रदर्शित करने और अश्लीलता परोसने की जरूरत नहीं। दस दिनों के रामलीला मंचन के दौरान कई ऐसे प्रसंग आते हैं, जब दर्शक हंसता भी है, भाव में आंसू भी बह निकलते हैं और उत्तेजना में रोंगटे भी खड़े हो जाते हैं, इन्हीं विशेषताओं के कारण रामलीला ने अपनी अलग पहचान विभिन्न लोकसंस्कृतियों के बीच बना रखी है।
प्राइम टाइम पीछे, रामलीला आगे

आज का दौर घर घर टीवी, हर घर टीवी का है और इस टीवी का सबसे खास साथी है प्राइम टाइम जिस दौरान न जाने मनोरंजन के कितने माध्यम उपलब्ध रहते हैं और आम दिनों में तो इस वक्त पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों की टीआरपी की लड़ाई सबसे ज्यादा होती है। इन सबके इतर रामलीला मंचन के दस दिनों के दौरान टीवी का यही प्राइम टाइम फीका पड़ जाता है और लोग बरबस ही रामलीला मंचन का आनंद उठाने को आतुर दिखते हैं। भगवान श्री राम की तपोस्थली चित्रकूट में जहां श्री राम ने अपने वनवासकाल के साढ़े ग्यारह वर्ष बिताए वहां तो रामलीला का महत्व और उसके प्रति रूचि का अंदाजा उमड़ने वाले हुजूम से लगाया जा सकता है। यूँ तो पूरे बुन्देलखण्ड में रामलीला मंचन पूरे जोर शोर से होता है, लेकिन चित्रकूट और प्रभु श्री राम एक दूसरे के पूरक हैं सो यहां रामलीला लोगों के मन मस्तिष्क में गहराई तक अपनी छाप छोड़ चुकी है।
समाजसेवी केशव शिवहरे, पंकज अग्रवाल श्याम गुप्ता शानू गुप्ता अजीत सिंह , राम बाबू गुप्ता, परितोष द्विवेदी, विजय रावत, रमेश द्वेदी आदि एक स्वर में कहते हैं कि वे धन्य हैं जो उन्हें चित्रकूट में जन्म मिला और श्री राम की तपोभूमि में उनकी लीलाओं का मंचन एक अलग ही अनुभूति देता है जिसे बहुत हद तक शब्दों में बयां करना सम्भव नहीं। समाजसेवियों का कहना है कि आज रामलीला में कई जगहों से अश्लील कार्यक्रम होने की सूचना मीडिया और सोशल मीडिया के माध्यम से मिलती है जो सर्वथा गलत है। रामलीला भारत की पहचान उसका गौरव और लोक संस्कृति की आत्मा है इसपर किसी भी प्रकार की अश्लीलता उचित नहीं, आयोजकों को इससे दूर रहना चाहिए। फ़िल्मी गानों पर नहीं, बल्कि भक्ति संगीतों पर नृत्य आदि का स्वस्थ मनोरंजन कराया जा सकता है।
भगवान राम की तपोस्थली चित्रकूट जिसके कण कण में बसे हैं राम और जहां बहती है श्री राम की भक्तिधारा, उस चित्रकूट में रामलीला का अवलोकन स्पंदन और दृश्यांकन अन्य जगहों से जुदा है इसमें कोई संदेह नहीं और रामलीला मंचन के समय उमड़ने वाली भीड़ इस बात की गवाही देती है कि आज भी कायम है और शायद कल भी रहेगा रामलीला का महत्व उसकी प्रासंगिकता।
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