आजादी के बाद जिस समय 50 व 60 के दशक में देश में कांग्रेस की एकतरफा लहर चल रही थी उस समय कम्युनिस्ट पार्टी ने सेंधमारी करते हुए बुन्देलखण्ड की महत्वपूर्ण बांदा लोकसभा सीट पर अपनी जीत का परचम लहराया. सन 1957 व 1962 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी क्रमशः राजा दिनेश सिंह व सावित्री निगम की विजय के बाद सन 1967 के लोकसभा चुनाव में सीपीआई(कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया) ने कांग्रेस के तिलिस्म को तोड़ा और इस बार लाल परचम के उम्मीदवार जागेश्वर सिंह यादव ने विजयी पताका लहराई. हालांकि इससे पहले सन 62 के आम चुनाव में इस सीट पर कम्युनिस्ट पार्टी की दस्तक हो गई थी और पार्टी प्रत्याशी रामसजीवन हार गए थे. इस बीच जनसंघ के उदय व कांग्रेस की आर पार की लड़ाई में कम्युनिस्ट पार्टी नेपथ्य में चली गई लेकिन संगठन को खड़ा करने का काम चलता रहा.
80 के दशक में हुई वापसी
80 के दशक में एक बार फिर कम्युनिस्ट पार्टी की वापसी हुई. 1984 के लोकसभा चुनाव में पार्टी से कद्दावर नेता रामसजीवन मैदान में उतरे लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा. इस बीच संगठन में तेजी से काम हुआ और सन 1989 के लोकसभा चुनाव में पार्टी प्रत्याशी रामसजीवन लाल परचम लहराकर लोकसभा पहुंचे. हालांकि राम मंदिर आंदोलन की लहर में सन 1991 में पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा. इस बार भी रामसजीवन ही उम्मीदवार थे.
90 के दशक से लड़खड़ाई पार्टी
कम्युनिस्ट पार्टी 90 के दशक से नेपथ्य के पीछे एक बार फिर जाने लगी. कारण था कद्दावर नेताओं का दल बदलना व संगठन को मजबूती की धार न देना. 1991 में हार के बाद पार्टी के दिग्गज नेता रामसजीवन ने सन 1996 के चुनाव में बसपा का दामन थाम लिया और विजयी होकर संसद पहुंचे. 1998 में फिर वे बसपा से उम्मीदवार थे लेकिन इस बार उन्हें फिर हार का मुंह देखना पड़ा. 1999 में रामसजीवन फिर एक बार विजयी हुए. इस बीच कम्युनिस्ट पार्टी में कद्दावर नेताओं का अकाल पड़ता चला गया. हालांकि इस दौरान विधानसभा चुनाव में पार्टी का जलवा कायम रहा. चित्रकूट-बांदा लोकसभा की 5 विधानसभा सीटों में से तीन सीटों(कर्वी, नरैनी बबेरू) पर सन 1972, 1977, 1985,1989, के विधानसभा चुनाव में लाल परचम शान से लहराया. इस लोकसभा चुनाव में पार्टी ने महेंद्र को चुनाव मैदान में उतारा है.